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दूसरा
व्याख्यान.
श्री कल्पसूत्र हिन्दी
अनुवाद।
॥३३॥
तीसरे वलय में उतने ही अंगरक्षक देवों के सोलह हजार कमल हैं। यह तीसरा वलय । चौथे वलय में अभ्यन्तर आभियोगिक देवों के बत्तीस लाख कमल हैं। पाँचवें वलय में मध्यम आभियोगिक देवों के चालीस लाख कमल हैं। यह पंचम वलय । छठे वलय में बाह्य आभियोगिक देवताओं के अड़तालीस लाख कमल हैं। छट्ठा वलय । मूल कमल के साथ सर्व कमलों की संख्या एक कोटी, बीस लाख, पचास हजार, एक सौ बीस होती है। इस प्रकार के कमल स्थान में रही हुई लक्ष्मीदेवी. का दिग्गजेंद्रोंद्वारा अभिषेक होता देखती है। यहाँ पर कुछ श्रीदेवी के रूप का वर्णन लिखते हैं।
अच्छे प्रकार से रक्खे हुए सुवर्ण कछुवे के समान बीचसे कुछ उन्नत और इर्दगिर्द नीचे उसके चरण हैं। नख उन्नत, सुकुमार, स्निग्ध तथा लाल हैं । हाथ पैरों की अंगुलियाँ कमल पत्र के समान कोमल हैं। पैरों की पिंडलियाँ केले के सदृश गोल अनुक्रम से नीचे पतली और ऊपर स्थूल होकर शोभायमान हैं। गोड़े गुप्त और हाथी की गूढके समान जंघाये हैं। कमर में सुवर्ण का कंदोरा है। नाभि से लेकर स्तनों तक सूक्ष्म रोमराजी शोभाय-1 मान है । उसका कटिप्रदेश मुष्टिग्राह्य और मध्य विभाग तीन वलियों सहित है। उसके अंगोपांग चंद्रकान्तादि मणिमाणिक्यादि रत्नों से जडित सुवर्णमय सर्व आभूषणों से भूषित हैं। स्वर्ण कलश सदृश हृदयस्थल पर उसके स्तनयुगल हारों तथा सुन्दर पुष्पों की मालाओं से शोभित हैं। हृदय में मोतीयों की माला, कंठमें मणिमय सूत्र और कानों में दो कुंडल हैं। इस प्रकार आभूषणों की शोभासमूह से श्रीदेवी का मुखमंडल अत्यधिक सुन्दर
॥३३॥
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