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सातवें स्वम में त्रिशलादेवी सूर्यमंडल को देखती है-वह सूर्य अंधकार समूह का विनाशक, जाज्वल्यमान तेजवान्, लाल अशोक, प्रफुल्लित केसपुष्प, तोते की चोंच, तथा चणोठी के अर्थ भाग सदृश रक्त वर्णवाला
और कमलों को विकसित कर-कमल वनों की शोभा बढानेवाला है। ज्योतिष-शास्त्र संबन्धी लक्षणों को बतलानेवाला, ज्योतिष चक्रग्रहों का राजा एवं आकाश में साक्षात दीपक के समान है। वह हिमपटल को गलानेवाला, रात्रिविनाशक, उदय और अस्त समय में ही दो २घड़ी सुखपूर्वक और शेष समय दुःख से देखने योग्य है, उदय एवं अस्त समय ही जो एकसा लाल तथा संसार का नेत्ररूप है। तथा वह अंधकार में स्वेच्छापूर्वक विचरनेवाले अन्यायकारी मनुष्यों को रोकनेवाला, शीतवेग का विनाशक, मेरुपर्वत की प्रदक्षिणा करनेवाला विशाल मंडल युक्त और अपनी हजारों किरणों द्वारा चंद्रादि समस्त ग्रहों के तेज को निस्तेज करनेवाला है । सूर्य किरणें ऋतुमेद के कारण सदैव एक समान नहीं रहतीं। निम्न प्रकार होती हैं।
सूर्य किरण
चैत्र,
वैशाक.
ज्येष्ठ.
आषाढ. श्रावण. | भाद्रपद. आश्विन. कार्तिक. मार्गशीर्ष. पोष. | माघ.
फाल्गुन.
यंत्रकम्
| १२०० | १३००
१४०० | १५०० | १४०० | १४०० १६०० | ११०० | १०५० | १०००
११०० | १०५०
अब आठवें स्वम में त्रिशला क्षत्रियाणी उत्तम सुवर्ण के दंडवाला और हजार योजन ऊँचा ध्वज देखती
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