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रेती में दबा हुआ है और सिर्फ डेढ़ हाथ बाहर दीखता है। विचार कर कहो कि उस स्तंभ की कितनी लंबाई होनी चाहिये ? वह गणित के हिसाब से ६ हाथ लंबा स्तंभ था । गणित के ऐसे हिसाबों को शीघ्र बतानेवाला होगा । शिक्षा कल्प याने आचार विधान के ग्रंथ, व्याकरण अर्थात् शब्दसिद्धि शास्त्र के वीस व्याकरण इस प्रकार हैं-ऐंद्रे व्याकरण, जैनेंद्र व्याकरण, सिद्धहेमचंद्र व्याकरण, चाँद्र व्याकरण, पाणिनीय व्याकरण, सारस्वत, शाकटयन, वामन, विश्रान्त, बुद्धिसागर, सरस्वतीकंठाभरण, विद्याधर, कलापक, भीमसेन, शैवे. गौरें, नैन्दी, जयोत्पल, मुष्टि और जयदेव व्याकरण । इन बीस व्याकरणों में, छंदशास्त्र में, निरुक्त में, ज्योतिषशास्त्र में तथा अन्य भी ब्राह्मणों को हितकारी एवं परिव्राजक माने संन्यास संबन्धी आचार शास्त्रो में वह बहुत ही निपुण होगा इस लिए हे देवानुप्रिये ! तुमने बड़े श्रेष्ठ स्वप्न देखे हैं।
पूर्वोक्त कह कर ऋषभदत्त ब्राह्मण उन स्वप्नों की वारंवार अनुमोदना करता है। फिर देवानन्दा ब्राह्मणी मस्तक पर अंजलि कर के कहती है कि-हे देवानुप्रिय ! जैसा आप कहते हैं वैसा ही है। यह बिलकुल यथार्थ और निःसंदेह है जो अर्थ आपने कहा है। मैं भी इसी अर्थ को चाहती हूँ, वारंवार चाहती हूँ। यों कह कर देवानन्दा उन स्वमों को अच्छी तरह स्मरण करती है। फिर ऋषभदत्त ब्राह्मण के साथ मानवीय सुख भोगती हुई अपना सानन्द समय बिताती है।
कार्तिक सेठ की कथा।
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