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कल्पसूत्र हिन्दी अनुवाद ।
॥२८॥
वह अनेक भवोंद्वारा संसार परिभ्रमण करता रहा, वे भव इन स्थूल सत्ताईस भवों में नहीं गिने हैं । वहाँ से II दूसरा छठे भव में स्थूणा नगरी में बहत्तर लाख पूर्व की आयुवाला पुष्प नामक ब्राह्मण हुआ और त्रिदंडी होकर मरा। सातवें भवमें सौधर्म देवलोक में मध्यम स्थिति का देव हुआ। वहाँ से आठवें भव में चैत्य ग्राम में साठ लाख पूर्व की आयुवाला अग्निद्योत नामा ब्राह्मण हुआ और अन्त में त्रिदंडी होकर मरा । वहाँ से नवमें भव में ईशान देवलोक में मध्यम स्थितिवाला देव हुआ। वहाँ से च्यव कर दशवें भवमें मंदर ग्राममें छप्पन लाख पूर्व की आयुवाला अग्निभृति नामक ब्राह्मण हुआ और अन्त में त्रिदंडी होकर मरा । ग्यारहवें भव में तीसरे कल्प में मध्यम स्थितिवाला देव हुआ। बारहवें भवमें श्वेतांबी नगरी में चवालिस लाख पूर्व की आयुवाला भारद्वाज नामक ब्राह्मण हुआ और अन्तमें त्रिदंडी होकर मरा । तेरहवें भव में महेंद्र कल्प में मध्यम स्थितिवाला देव हुआ। वहाँ से फिर कितनेएक काल तक संसार में परिभ्रमण कर चौदहवें भवमें राजगृह नगरमें चौंतीस लाख पूर्व की आयुवाला स्थावर नामक ब्राह्मण हुआ। अन्तमें त्रिदंडी होकर पंद्रहवें भवमें ब्रह्मलोक नामा स्वर्ग में मध्यम स्थितिवाला देव हुआ । सोलहवें भव में कोटी वर्ष आयुवाला विश्वभूति युवराज पुत्र हुआ। संभूति मुनि के पास चारित्र ले कर एक हजार वर्ष तक घोर तप किया। एक समय मासोपवास के पारणे के लिए मथुरानगरी में | गोचरी जा रहा था, मार्ग में एक गाय का सींग लगने से तपस्यासे कृश होने के कारण जमीन पर गिर पड़ा। यह देख कर वहाँ पर शादी करने के लिए आये हुए विशाखानन्दी नामक उसके चचा के पुत्रने उसका उपहास्य IC॥२८॥
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