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श्री
कल्पसूत्र
हिन्दी अनुवाद |
॥ २५ ॥
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आश्चर्य हुआ ।
(८) चमरेन्द्र का ऊर्ध्वगमन-कोई एक पूर्ण नामक तपस्वी काल करके चमर नाम का असुरकुमार देवों का इंद्र बना, वह नवीन ही पैदा हुवा था अतः सौधर्मेंद्र को अपने ऊपर बैठा देख क्रोधित हो अपना परिष नामा शस्त्र ले और श्रीवीरप्रभु का शरण स्वीकार कर सौधर्म के अंगरक्षक देवों को त्रासित करते हुए सौधर्म विमान की वेदिका में पैर रख कर उसने शक्रेंद्र पर आक्रोस किया । अकस्मात् क्रोधित हो शक्रेंद्रने उस पर अपना जाज्वल्यमान वज्र छोड़ा। विजली समान देदीप्यमान वज्र से भयभीत हो वह भगवन्त के चरणों में जा छिपा । ज्ञान से व्यतिकर जान कर इंद्रने शीघ्र आ कर प्रभु से सिर्फ चार अंगुल दूर रहे हुए अपने वज्र को पकड़ लिया । भगवान की कृपा से तुझे छोड़ता हूँ, यों कह कर शक्रेंद्र अपने स्थान पर चला गया । यह चमरेंद्र का जो सौधर्म देवलोक का ऊर्ध्वगमन है सो आठवाँ आश्चर्य हुआ ।
( ९ ) एक समय में एकसौ आठ का सिद्धिगमन - एक समय में उत्कृष्ट अवगाहनावाले एकसौ आठ प्राणी मुक्ति को नहीं जाते, ऐसा कुदरती नियम होने पर भी इस अवसर्पिणी काल में श्री ऋषभदेव प्रभु, भरत के सिवा उनके निन्यानवें पुत्र और आठ भरत के पुत्र, एवं एकसौ आठ ये एक समय में ही सिद्धिगति को प्राप्त हुए हैं। यह नवमा आश्चर्य हुआ ।
(१०) असंयति पूजा-संसार में सदैव संयतों-संयमधारियों का ही पूजा सत्कार होता है, परन्तु इस
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दूसरा व्याख्यान.
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