________________
परिव्राजक आदि अनेक संघ चारों ओर देश-भरमें फैले हुए शास्त्रोंमें देखते हैं। ___आध्यात्मिक धर्म-संघोंमें तेजस्वी, देशकालज्ञ और विद्वान् गुरुत्रोंके प्रभावसे आकृष्ट होकर अनेक मुमुक्षु ऐसे भी संघमें आते थे और दीक्षित होते थे कि जो उसमें ६, १० वर्षके भी हों, बिलकुल तरुण भी हों, विवाहित भी हों। इसी तरह अनेक मुमुक्षु स्त्रियाँ भी भिक्षुणी-संघमें दाखिल होती थीं, जो कुमारी, तरुणी और विवाहिता भी होती थी। भिक्षुणी संघ केवल जैन परम्परामें ही नहीं रहा है बल्कि बौद्ध, सांख्य, आजीवक आदि अन्य त्यागी परम्पराओंमें भी रहा है। पुराने समयमें किशोर, तरुण, और प्रौढ़ स्त्री-पुरुष भिक्ष संघमें प्रविष्ट होते थे, यह बात निःशंक है । बुद्ध, महावोर आदिके बाद भी भिक्षु-भिक्षुणियोंका संघ इसी तरह बढ़ता व फैलता रहा है और हजारोंकी संख्यामें साधु-साध्वियोंका अस्तित्व पहलेसे आजतक बना भी रहा है। इसलिए यह तो कोई कह ही नहीं सकता और कहता भी नहीं कि बाल-दीक्षाकी प्रवृति कोई नई वस्तु है, परम्परा सम्मत नहीं है, और पुरानी नहीं है ।
दीक्षाके उद्देश्य अनेक हैं। इनमें मुख्य तो आत्मशुद्धि की दृष्टिसे विविध प्रकारकी साधना करना ही है। साधनाओंमें तपकी साधना, विद्याकी साधना, ध्यान योगकी साधना इत्यादि अनेक शुभ साधनाओं का समावेश होता है जो सजीव समाजके लिये उपयोगी वस्तु है। इसलिए यह तो कोई कहता ही नहीं कि दीक्षा अनावश्यक है, और उसका वैयक्तिक जीवनमें तथा सामाजिक जीवन में कोई स्थान ही नहीं । दीक्षा, संन्यास तथा अनगार जीवनका लोकमानसमें जो श्रद्धापूर्ण स्थान है उसका अाधार केवल यही है कि जिन उद्देश्योंके लिये दीक्षा ली जानेका शास्त्र में विधान है और परम्परामें समर्थन है, उन उद्देश्योंकी दीक्षाके द्वारा सिद्धि होना । अगर कोई दीक्षित व्यक्ति, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, इस पंथका हो या अन्य पंथका, दीक्षाके उद्देश्योंकी साधना में ही लगा रहता है और वास्तविक रूपमें नए-नए क्षेत्र में विकास भी करता है तो कोई भी उसका बहुमान किए बिना नहीं रहेगा। तब आज जो विरोध है, वह न तो दीक्षाका है और न दीक्षित व्यक्ति मात्रका है । विरोध है, तो केवल अकालमें दी जानेवाली दीक्षा का । जब पुराने समयमें और मध्यकालमें बालदीचाका इतना विरोध कभी नहीं हुआ था, तब अाज इतना प्रबल विरोध वे ही क्यों कर रहे हैं जो दीक्षाकों आध्यात्मिक शुद्धिका एक अंग मानते हैं और जो दीक्षित व्यक्तिका बहुमान भी करते हैं । यही श्राजके सम्मेलनका मुख्य विचारणीय प्रश्न है।
अब हम संक्षेपमें कुछ पुराने इतिहासको तथा वर्तमान कालकी परिस्थिति
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org