Book Title: Chaupannamahapurischariyam
Author(s): Shilankacharya, Amrutlal Bhojak, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text
________________
प्रस्तावना
है तब वज्रदेवको वापस बुला लेता है-उसे पकड़
लेता है। ९. गोशालक सर्वानुभूति नामक मुनिके ऊपर जब तेजोलेश्या छोड़ता है तब सर्वानु- ९. गोशालककी तेजोलेश्यासे
भूति मुनि भी गोशालकके सामने अपनी तेजोलेश्या छोड़ते हैं। दोनों तेजो- सर्वानुभूति मुनि तथा लेश्याओंके बीच युद्ध होता है। उस समय वर्धमानस्वामी शीत लेश्या छोड़ते
सुनक्षत्रमुनि मर जाते हैं। हैं, जिससे गोशालककी तेजोलेश्या स्वयं उसीको दुःख देने लगती है । फलतः अन्तन्तः वह वर्धमानगोशालक वर्धमानस्वामीकी शरणमें आता है और उसका दुःख दूर होता है । स्वामीके ऊपर तेजोलेश्या (पृ. ३०६-७)
छोड़ता है। तब भगवान्के प्रभावसे वह वापस लौटकर गोशालकको ही पीड़ित करती है। इसीके परिणाम स्वरूप गोशा
लककी मृत्यु होती है। १०. त्रिपृष्ठ वासुदेवके सारथि द्वारा पूछे गये प्रश्नके उत्तररूप मुनिकथनमें यद्यपि १०. यह बात अन्य ग्रंथोंमें
स्पष्ट निर्देश नहीं है, फिर भी 'त्रिपृष्ठके सारथिका जीव ही मरीचिके शिष्य कपिल अस्पष्ट रूपसे भी परिमुनिका जीव होगा' ऐसी ध्वनि उसमें से निकलती है । (पृ. ९७-१००)
लक्षित नहीं होती। ११. अस्थिक सर्पके द्वारा मारे गये मनुष्योंकी हड्डियोंसे बने हुए मन्दिरका तथा ११. बैल मरकर शूलपाणि यक्ष उसके द्वारा वर्धमानस्वामीको किये गये उपसर्गका वर्णन है । (पृ. २७५ ) होता है। उसके द्वारा
फैलाई गई महामारीके कारण मृत मनुष्योंकी हड्डियोंसे बने हुए मन्दिर आदिके प्रसंगका उल्लेख
मिलता है। वैषम्यसूचक उपर्युक्त घटनाओंमें शायद कहीं लेखकका अनवधान कार्य कर गया हो, परन्तु यदि इतर ग्रन्थ आर्यकालकरचित प्रथमानुयोग पर आधारित हो तो ऐसी कल्पनाके लिए अवकाश रहता है कि प्रस्तुत ग्रन्थके मूल स्रोतके रूपमें कोई दूसरी भी परम्परा रही होगी। प्रस्तुत ग्रन्थका मुख्य मूल स्रोत, जैसा हम पहले कह चुके हैं, प्रथमानुयोग है; तथापि ग्रन्थकारके समक्ष दूसरे भी कथा-ग्रन्थ रहे होंगे। इस प्रतिपादनका समर्थन स्वयं ग्रन्थकारने 'लाइओ तस्स चिरंतणकहासंबंधस्स णाडयस्स य वेरग्गजणणो एको अंको' (पृ. १६) तथा अरिष्टनेमिचरित्रके अन्तमें 'अओ उवरिं जे भणियं
१ यह कथा 'विबुधानन्द' नाटकमें आती है। इसकी नायिकाका नाम बन्धुमती है । बन्धुमती-आख्यायिकाका उल्लेख तत्त्वार्थभाष्यानसारिणी टीकामें भी मिलता है। वहां वह उल्लेख इस प्रकार है- 'विकल्पिते ह्य स्मृतिदृष्टा बन्धुमत्याख्यायिकादौ' (भाग १, पृ. ३७६) । तत्त्वार्थटीकामें निर्दिष्ट और यहां नाटकमें उल्लिखित कथा एक ही है या भिन्न इसके बारेमें विशेष सामग्रीके अभावमें निश्चितरूपसे नहीं कहा जा सकता ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org