Book Title: Chaupannamahapurischariyam
Author(s): Shilankacharya, Amrutlal Bhojak, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 342
________________ २५९ ५३ पाससामिचरियं । अह चलियासणसुरणाहवुत्तहरिणाणणेण पहयाए । उच्छलइ सव्वओ फुडरणंतघंटाए टंकारो ।। १५३ ।। घंटासदायण्णणजिणजम्मणमुणियवइयरो सहसा । सयलो वि विविहवित्थरविरइयणेवच्छसच्छाओ ॥ १५४ ॥ संपत्तो पहयुद्दामघडियपडपडहपडिरवणिणाओ। सुरणाहमंदिरत्याणमंडवं मुरगणो अत्ति ॥१५५ ॥ इय सोहम्माहिवई सह सेससुरा-मुरेहिं परियरिओ। पत्तो तिहुयणगुरुणो णयरिं पप्फुल्लमुहसोहो ॥१५६ ॥ "ताव य लद्धमुराहिवाऽऽणत्तिहरिसिएण हरिणेगमेसिणा णिययाणुहावसोवियसयलजणपरियणेण अवहरिऊण समप्पिओ मुराहिवइणो जयगुरू। तओ पंचप्पयारपरियप्पियसरूवेण हरिणा कैरयलंजलिगयं णिव्वण्णेऊण भयवन्तं, बंदिउंणहमणिमिलंतचूलामणिपहापयरिसं, पत्थिओ तियसगिरिसमुहं सुरवती । पयट्टो य पयडकडयपडिबद्धकुलसेल-महाणतिमणहरं पेच्छमाणो महोवहिविमलजलदप्पणायमाणं जंबुद्दीव, संपत्तो पसरंतमणिसिलायडपडिबद्धतुंगसिहरोवइयणिजारप्पवाहं मणहरवरकप्पपायचुप्पण्णमणिकुसुमगुरुछुच्छलन्तमंदमयरंदं पासपरिसकन्तसयलगहयक्ककिरणकब्युरियमणिसिलायल विज्जाहरवरसुंदरिसंचरणावलम्गचलणारत्तयरंजिज्जमाणमेहलाकलावं सासयजिणिंदमणिभवणमंडियवियडणियंबप्पएसं सिहरघूलियासु लक्खिज्जमाणरक्खामणिकिरणकंतिराहिल्लं, चंदमणिसलिलणिज्झरणमियमंडलसंडमंडियघणकडयपन्भारं । पज्जलिओसहिजालाकलावपसरियणहाहोयं ॥ १५७ ॥ वियडणियव(यंब)यडालग्गविमलविष्फुरियफलिहमणिमयधवलप्पहावलयवढिउम्भडसोहं । उव्वहमाणं भवणम्मि पसरियं णिययकित्तिं व ॥ १५८ ।। वोसट्टवियडसुरतरुमणिगोच्छुच्छलियकेसरच्छायं । गरलम्बन्तसव्वंगयररयणरिदि व(?) ॥१५९ ॥ धारन्तं उधुदृन्तनुंगिमारुद्धरविरहतुरंग । अप्पाणं पिच गयणम्मि पसरियं सिहरसंदोहं ॥१६० ।। संगोक्यंत(त)घणगहिरगजिरं वियडकडयपडिलम्गं । जलहरपडलं पिव सइपरिट्टियं पवरकरिजूहं ॥१६१ ।। णिम्मलसरिकिरणकलावविन्भम(म) मरिय(य)कंदरद्धय(दंतं)। पारयरसं वहन्तं पसरुच्छलिय(य) णियजसं व ॥१६२।। [अह] तिहुयणमंदिरधरणक्खं(ख)भभूयं सुराहिवो सहसा। पत्तो सुरगिरिसिहरं सुरकयजयहलहलारावं ॥१६३॥ तो ओवइओ सरहसं मुराहिवो सह सुरवरेहिं सुरगिरिसिहरम्मि । तत्य वि परिवियडम्मि फलिहमणिसिलायडम्मि पलोइयं पवणधुयचटुलधयवडालिद्धसंचरन्तसुररामायणमणहरं उवरिहुत्तोवडन्तणहणिण्णयाजलप्पवहसरिसतोरणक्खंभं अबहोवासट्ठियगुरुमइंदुबूढफलिहगिरिविन्भमं सीहासणं । तत्थ य मुरवरकरुलंबियमंदारपल्लयुल्लसंतकुसुमपयरो मुरपहयपज्जिराउज्जसहसंबलियजयजयारवो सह जयगुरुणा णिसण्णो सुराहिवो। संठाविओ भयवं उच्छंगे। आसीणम्मि य सुराहिवे वा मणिमयकलमुम्भू(भ)डवयणन्तरणिन्तपिहुपवाहिल्लं । तियसेहिं से णिहित्तं कयजयरवपवरखीरजलं ।। १६४ ।। सयलमुरा-ऽसुरकरखित्तविसमवेउधुरा विरायन्ति । कयजयरव ब कयरवविणितजलणिन्भरा कलसा ।। १६५॥ भुवणगुरुणो णहट्ठियसियवसहविसाणपसरिओ सहइ । पयपन्भारो गुरुफलिहसेलसियणिज्झरोहो ब्व ॥ १६६ ॥ अचन्तललियलायण्णमणहरे जिणतणुम्मि ससिधवलो। ओवयइ तियसकामिणिलोयणणिवहो व जलणिवहो ॥१६॥ धरणिणिहित्तं परिसंठिउद्धघणकुसुमकेसरालिद्धं । जायं जिणतणुसंकमपसरियपुलयं व खीरजलं ॥ १६८ ॥ जायं सवियडकलपु(सु)च्छलन्तकणयप्पहोहपडिभिण्णं । संझारुणजोहावडलविक्भमं पवरखीरजलं ॥ १६९ ॥ दीसंति जिणतणुच्छलियकन्तिपडिभिण्णकडयपडिबद्धा । मज्जणजलप्पवाहावलग्गसेयालकलियब ।। १७०॥ मारुयपहल्ल(ल्लि)रुवेल्लमज्जणोययपवेविरुष्पडिमो । चलइ व तियसपबयफुरंतमणिसिहरपन्भारो ॥ १७१ ॥ 1°गवेसिणा जे । २ करयंजलि सू । ३ पेच्छमाणो जंबुद्दीवं सहरिसं बच्चतो णयलम्मि-अह तिहुयणमंदिरघरणखंभभूयं सुराहियो सहसा । पत्तो सुरगिरिसिहरं सुरकयजय-हलहलारावं ॥ (गाथा-१६३)। तो भोवइओ सरहसं सुराहिवो सह सुरवरेहि सुरगिरिसिहरम्मि तत्थ वियडम्मि, पलोइयं सीहासणं । तओ तम्मि सुरवरमुच्चतसुरहिकुसुमपयरं सुरपदि(ह)यवजिराउज्जससंवलियजयजयारवं सह जयगुरुना उबविट्ठो मुराहियो । संठाविभो भयव उच्छगे । आसीणम्मि य सुराहिवे खीरोदहिपवरणीरपरिपुण्णकणयमयामलकलसेहिं मया विभूईए कमो भयवओ सुररा-ऽसुरेहिमहिसेओ ति । अह सवायरपसरंततिथस जे, (गाथा १४१)।.. ___Jain EduRRENEUR ulate sohal Use Only www.jainelibrary.org

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