Book Title: Chaupannamahapurischariyam
Author(s): Shilankacharya, Amrutlal Bhojak, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text ________________
चप्पलमहापुरिखचरियं ।
ओ
मायणिण ईसिवियसावियवयणकमला जंपिउं पयत्ता चंदणा जहा - महाराय ! किं पडिबुद्धबुद्धिगो एवंविहाई जंपति ? जेण सुव्वउ
सोच्चि का
पंडिया पसंसंति । सामत्थं जत्थ समत्थवीरिए..
.....।। २७० ।।
..सामत्थयाजुओ पढमजोव्वणे चेय । सयलाण वि करणीयाण पच्चलो जायए जंतू ॥ २७१ ॥ जया पुण वियलिंदियवेयल्ल विइण्णणीसहसरीरो । इय उद्विउं पितइया ण तरइ किं कुणउ कायव्वं ? ॥ २७२ ॥ वारिय.. . मेत्तसाहणो णेय । कुलिस णिद्दलइ गिरी, कयाइ णो महियापिंडो ॥ २७३ ॥ इय रहिओ कह सामत्थयाए काउं तरेज्ज किं पि णरो ? । इच्छामि तेण काऊण जोव्वणे चेय धम्मम ॥ २७४ ॥
२९२
अण्णं च एस चेय रयणवुट्ठी -
- उच्छाहेइ मं धम्मुज्जमे, किं स्थ तुम्हेहिं ण समायण्णियं विउसजंपिय? - ण धम्भरहिया सव्वसंपयाणं भायणं हवंति । एत्थावसरम्मि य समागंतूण पुरंदरेण भणिओ सयाणियपत्थिवो जहा - भो णराहिव ! मा ए -- (वं जंप )सु, जेण सुब्बउ -
---
किं ण मुणिया तुमाए एसा संपण्ण सीलगुणविहवा । चंदणतरुणो साह व चंदणा सीलपन्भारा ? || २७५ ।। एसा हु भयवओ वद्धमाणतित्थंकरस्स पढमयरा । अज्जाण संजमुज्जमपवित्तिणी होहि अणग्घा ॥ २७६ ॥ हिययविनयसहर(?रि) सपव्वज्जाकाललालसा एसा । आहासिउं पि जुज्जइ ण अण्णहा, किं त्थ भणिरण १ ॥ २७७ ॥ चिउ णिलणे च्चिय तुम्हं ता जाव होइ सो समओ । जयगुरुणो पव्वज्जाणुग्गहकरणस्स जो जोगो ॥ २७८ ॥ एयं पि इमाए चिय होइ(ई) सुरसुकरयणवुट्ठिधणं । गिव्हउ, जहिच्छियं देउ जस्स जं जोग्गमेत्ताहे ॥ २७९ ॥ तो सासुराविणो अणुमइमेत्तेण गहियघणसारा । णीया सयाणिएणं समंदिरं गोरवं काउं ॥ २८० ॥ इय सा एवं भायं णरवइणो, सेट्ठिणो तहा बीयं । तइयं तु अप्पणा गेव्हिऊण विगया णरिंदहरं ।। २८१ ॥
एवं च दीणा - Sणाह (णाहाण) पयच्छन्ती जह (हि) च्छियमत्थलाहं पत्थिया सेहिमंदिराओ । पत्थिवेणावि पुरंदरवयपोच्छाहिएण पूइऊण धणसेट्ठि तयणुमतीए णीया समंदिरं वसुमई विहिणा, णिहित्ता कण्णंतेउरमज्झम्मि । तओ सा विमुक्का सालंकारा वि साहीणसीलालंकारविडूसियावयवा, अच्चन्तमणहरुप्पण्णलायण्णजोव्वणपयरिसा वि परिणयवयाइरित्तं ववसिया, अवमण्णियासेसविसयइंदियमुहा त्रि असमसमासाइयसमसुहा भयवओ केवलणाणुप्पत्तिसमयं पडिच्छमाणा सयाणियमंदिरे चिट्ठा ।
वसुमहसंविहाण [११] ॥
अण्णया य विविहमणिकिरणविक्खिण्णतिमिरणियरम्मि अव्वायसरसकुसुमोवयारपउरम्मि महमहन्तकालायरुधूमवडलम्मि समन्तओ आणाहिलासपरिसंठिया सुरभडसमूहम्मि पायालसुरलोयम्मि समुप्पण्णेण चमरासुरेण अवहिं परंजमाणेणं पलोइयं सोहम्माहिवइणो सयलमुररिद्धिसं--- (भारसुं) दरिल्लं विमाणमुवरिभाएण गच्छमाणं,
केरिस च ?-- लालिरहनु
[-] धुव्वंतघयचिंधयालिल्लं । दारद्वियमंगलकलसमुहणिहिप्पन्ततामरसं ॥ २८२ ॥ णिम्मलमणिभित्तित्थल संगयससि-सूर-तारयालोयं । ...... ...व्यत्तियसारहिसंतद्वरवितुरयं ॥ २८३ ॥
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464