Book Title: Chaupannamahapurischariyam
Author(s): Shilankacharya, Amrutlal Bhojak, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text ________________
५४ वद्धमाणसामिचरियं ।
२८७
विविहरसकरणकलतारमंदसंगीयवियक्खणाओ णट्टकुसलाओ परिकलियकलवल्लईवंसव(म)गहराउज्जसंजुयग्गहत्थाओ मणहरवेसा-ऽलंकारसललियंगीओ तियसविलासिणीओ, समागयाओ य जिणपायमूलं, साहिलासं च पलोइरं पयत्ताओ। कहं ?
सुरविलयाणं तक्खणविलासगुणघडणणिग्गया सहसा । जयगुरुणो कुसुमसर व्व पेसिया दिद्विविच्छोहा ॥१९६।। कीए वि कुसुमसंसत्तभमरमुहलोल्लसन्तधम्मेल्लो । कुणइ व्व भुवणगुरुणो संगमसुहपत्थणावणइं ॥ १९७ ॥
वेल्लहलकरयलंगुलिकलणासंजणियणीविविण्णासं । संजमइ ल्हसंतुव्वेल्लपल्लवं का वि हु कडिल्लं ।। १९८ ॥ रमणपुलिणम्मि णिवडइ का(की)य वि भीया पोहराणं व । हंसावलि ब णिम्मलरणंतकलरयणमेहलिया ॥१९९।।
वेल्लहलकरयलोयरणिवेसियं ललियभुवलयाणालं । लीलाकमलं पिव वहइ का वि महुगंधरिदिल्लं ।। २०० ॥ पत्थेइ कण्णमूलावलग्गणीलुप्पलावयंसेण । णिययकडक्खेग व मणहरेण रइकीलियब्वाइं ॥ २०१॥ कोमलमुणालवेल्लहलविन्भमिल्लाहिं बाहुलइयाहि । महइ अायासिउं रसवसुच्चरोमंचमुहयाहि ॥ २०२॥ ल्हसियंसुयसंजमणेण काइ पडिवक्खमच्छरेणं व । पडिमावडियं सिहिणत्थलम्मि पिहइ व्व जयणाई ॥ २०३ ॥ इय सयलजला(णा)हिगमुल्लसन्तसविसेसरूवसोहग्गो । सुरकामिणीयणो होइ भुवणगुरुलंभलोहिल्लो ।। २०४ ॥
एवं च तियसंगणायणो भूभंगविलासोल्लसंतलोयणाहिरामो कबोलमूलावलग्गलंबालउल्हसियकोन्तलकलावो बद्धसिढिलणियंसणो कसणरोमावलीकलियतिवलीतरंगमज्झो वियडणियम्बुव्वहणकिलन्तवेविरोरुजुयलो अच्चुण्णयपेढालसिहिणमंडलो जयगुरुदंसणजणियाऽउन्नविम्हओ पुरओ लिहिउ व परिसंठिओ, ससन्मसवेविराषयवो य जंपिउं पयत्तो। कहं ?
अणहिमओ कीस मणम्मि तुम्ह सुसुरहिविलेवणविलासो? । ओ ! मुणियं तुह साहीणपरिमले लहइ ण हु सोहं ॥२०५॥ कीस ण रज्जइ हिययं सुविचित्तविहत्तवण्णरुइरेहिं । पयइचलयंपिराएहि मुहय ! मणलग्गिरेहि पि? ॥२०६॥ दे ! पसिय पणामिज्जउ घडन्तगाढोवगूहियवमुहं । अलियकरुणाकिलम्मिर ! किलामियंगाण णियययणे ।।२०७॥ तेल्लोकपत्थणिज्जम्मि मणुयदुलहे मगोरहाणं पि । सुररमणिमुहे णो घडइ मुहय ! विवरम्मुहीहोउं ॥ २०८ ॥ कह वा अणुपं ण य कुणेसि रमियनपरिचएणं पि ? । मयणाउराण णिकिव ! मुणसि चिय जूरियव्वाई ॥२०९॥
अच्छउ वा विविहविलास-हास-सब्भावणिम्भरं पेमं । सामण्णाए वि दिट्ठीए सुहय ! किं णो पलोएसि? ॥२१०॥ जे तुह मणम्मि मउए वि सायया मयरकेउणो भग्गा । ते चेय मंतुकढिणऽम्ह कह णु भिंदंति सुहय! मणं? ॥२१॥
अहवा अण्णसुहासंगरायरसिए जणम्मि अणुराओ । जं कीरइ तं जायइ अरण्मरुइयस्स सारिच्छं ।। २१२ ॥ इय जयगुरुणो मयणाउराण सुरसुंदरीण भणियाई । सिद्धिसुहसंगमूसुयमणस्स चित्तं ण रामन्ति ॥ २१३ ॥
एवं च तासिं ण सुइसुहजणणगीयसदेण, ण य महुरवेणु-वीणाविणोएण, ण विविहकरणंगहारकलियणट्टोवहारण, ण य सविन्भमुब्भडवियंभियदिद्विविच्छोहेहिं, ण साणुणयसणिउणभणियबयविसेसेहिं पक्खुहिओ जयगुरू । एत्थावसरम्मि य पहायप्पाया जामिणी ।
तो(तत्तो) अरुणकरप्फंसकयवियासा सरोरुहच्छाया । तियसंगणाण हसइ ब्व मुहसिरिं भग्गमाणाण ॥ २१४॥ पच्छिमदिसासमल्लीणमंडले ससहरे कुमुइणीए । कजलकलुसा वियलंति बाहबिंदु व्व भमरगणा ॥ २१५ ॥ उव्वेल्ललवंगामोयमासलो कमलपरिमलसुयंधो । अणुलिंपइ ब पच्चूसमारुओ सयलजियलोयं ॥ २१६॥ ससिकिरणपहरफुट्ट घडिज्जए पवणविहुयदलणियरं । रविणा सवेयणं पिव करेहिं परिवेविरं कुमुयं ॥ २१७ ॥ मेलेइ विरहविहुराई चक्कमिहुणाई पियसहि व्य फुडं । संझासरोयरुच्छंगरुइरसयणीयचम्मि ।। २१८ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464