Book Title: Chaupannamahapurischariyam
Author(s): Shilankacharya, Amrutlal Bhojak, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text ________________
५४ वद्धमाणतामिचरियं ।
२८५ चाहे क्सिहरवलएण कलुसिज्जमाणस्स वि भयवओ मणयं पि ण कलुसिजइ मणो ताहे कयं णेण सयलजलजलहरुअमन्तमहन्मकूडविन्भमं चलकण्णताल[ण]विक्खेवविसमविक्खित्तभसलवलयं चलणभरपेल्लणा(णोणमन्तदलियबसुहावलयं अविरलगंडयलगलन्तमयजलाबद्धदुद्दिणं वित्थरिय(य)थोरथिरसोंडणीहरन्तसीयरासारं दढभिन्नदन्तमुसलावलग्गभडभीसपकलेवरं गइवेयाणिलपल्हत्यवियडवडपायधुन्भडं गइंदरुवं । पत्तो य तह परिणओ करिंदो रोसेणायंबिरच्छिवत्तणओ कोंडलियसोडमामाओ । कहं ति?
अल्लियइ पडिगयं पिव अहियं गुणदाणपरिमलुप्पित्थो। दीहरकरग्गभायं वीरं णिम्महियतमपंकं ।। १५७ ॥ परियट्टइ रोसवमुल्लसन्तपरिदीहरंगुलीएण । खयकालासणिपडणाइरित्तकढिणेण हत्येण ॥१५८॥ तुलियपरिवियडगिरिकडयकढिणसारम्मि वीरवच्छयले । रहसेण परिणओ वज्जकढिणदंतग्गसंघयणो । १५९ ।। अत्यमियं थामे च्चिय [................................। ..................] जह से दढदन्तमुसलजुयं ॥ १६०॥
तो पमुक्तकरिंदरूवेणं च तेणं कयं पसरियामरिसवसरसियप्फुरन्तपडिसदकंदरं समुन्भडघडन्तभिउडिभीसणमुहकुहरसंजणियणिन्भरभयं पजलियजलणजालाकविलच्छिच्छडाविच्छोहपयरं दुईसणवयणकंदरुग्गउबिडिमदढदीहदाढ(द) सद्लरुवं । ओवइओ य सुरकरिंदकुंभुन्भडुण्णए भयवओ बाहुसिहरम्मि । अवि य
तिक्खणहणंगलुल्लिहणबद्धलक्खो परिस्थिरपउट्ठो। लग्गो तिहुयणणाइस्स उष्णए दढसुयासिहरे ॥१६१॥ परिवियडवयणकंदरकवलियभुयसिहरलग्गचलणग्गो। धुणइ धुणंतो गुरुगो समज्जियं कम्मसंदोहं ।। १६२॥ णभणंतीए वि थेवं पि तक्खणं अकयरोसपसराए । ओसारिउ न दूरं खमाए बग्यो भुवणगुरुणो॥१६३॥ इय दूरोसारियकुवियवग्यरूवेण तक्खणो(णा) चेव । संगमयसुरेण वियम्भमाणगरुयाहिमाणेण ।। १६४॥
कयं च णेण अच्चुण्णमंतघणकसणदेहपन्भारभरियभूमंडलुम्भडवयणकंदरललंतजीहालो(लं) दढजलयणिवहं व णिसायररुवं । केरिसं च?
गुरुजलयकालपसरन्तकसणरयणीतमोहसच्छायं । चम्म-ऽहिमेत्तपरिसण्हदीहणहरुब्भडावयवं ।। १६५ ॥ जलियच्छिसिहिसिहावलयदूरविच्छूढतारयाणियरं । उबिडिमदसणविप्फुरियचंदिमाधवलियदियंतं ॥ १६६॥ दढगाढपरियराबद्धकुइयभुययंदमुक्कफुकारं । वच्छच्छलरंखोलंतसरसकयसहियणरसिरोमालं ॥ १६७ ।। मुहकंदरमुक्कट्टहासहुयवहविणिग्गयफुलिंगं । तरलतडिदंडसच्छहकरकलिउल्लालियतिमूलं ॥१६८॥ तकालुकत्तियकरिवराइणा धरण(णि)खित्तरुहिरकणं । पायक्खेवायंपियधरणियलपडन्तगिरिसिहरं ।। १६९ ॥ भु[य]इंदपासबंधणगण्ठिणिबधुद्धकविलकेसोहं । भीसणणयणंतविर्णितदीहरुक्कासरिसदिहि ॥ १७० ॥ इय भीसणयरभल्लंकिमुक्कपे(फे)काररावसंवलियं । तिहुयणभयजणणणिसायरेंदरूवं सुरेण कयं ॥ १७१ ॥
तओ तिमिरसंघाउ व्व णिसियरो जिणयंदमुद्दविउमाढत्तो। अणेयप्पयारं तहा णेण खलीकओ जयगुरू जहा से वियलिओ बलाहिमाणो।
एत्थावसरम्मि य विमुक्कणिसायररूवेण सयलमुरा-ऽसुरेंददुव्बारवेयपसरो गुरुवेयवसुद्धृयमहिमंडलुच्छलियरयवडलोच्छाइयणहंगणो आमूलुम्मूलियपडन्तगयतुंगतरुसंडसंकुलो अविरलणिबद्धावडन्तघणतिक्खसक्करावरिसजणियवियणो सरहसोरुद्धधरणिधरसंपाडियकंपावियधरामंडलो पमुक्को पयंडकोयंडमारुभो । तेणं च पुंजइज्जंतरयवडलपरिभमंतवाओलिणिवहेण किं कयं ? अवि य
शत्तिसमुच्छलियपउरमहि(ही)रउद्धृयवायवलएण । महिमंडलं समन्तोन्तिा] संवेल्लिज्जइ व तब्वेलं ॥१७२॥ वेउब्बूढा णिवडंति तक्खणं दूसहोवलणिहाया। जयणाहोवरि खरतिक्खकोरधारा णहाहितो ॥ १७३॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464