Book Title: Chaupannamahapurischariyam
Author(s): Shilankacharya, Amrutlal Bhojak, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 344
________________ ५३ पाससामिचरिय। व्व वित्थरइ सयलजणलोयणमाला। ___ एवं च कयाइ गयसिक्खाविणोएणं, कयाइ जच्चतुरंगवाहणीए, कयाइ जोयाण खेड्डेणं, कयाइ विविहकलाकोसल्लेणं, कयाइ सत्थत्थवियारेण कीलमाणस्स तस्स मुहसंपयाए व्व जोव्वणाहोओ, जोवणेणं व वम्महवियासो, बम्महेणं व सोहग्गाइसओ, सोहग्गाइसएण [व] रूवसमुदओ, रूवसमुदएणं व कलाकलावो, कलाकलावेणं पिव विवेओ, विएणं पिव कुसलहाणं भूसिज्जइ । सह भयवया भूसिओ सयलो वि जियलोओ ति । एत्थावसरम्मि य सयलगुणगणालंकियसविसेसीकयरूवसोहग्गाइसयस्स भयवओ पसेणइणा अञ्चन्तसोहग्गसालिणी पहावती णाम णिययधूया पणामिया । जा च केरिसा ? सहइ सवणेक्कवासावसंतसियदंतपत्त्याहरणा । उइएंदुमंडलालोयमणहरा पुष्णिमणिसि व्व ॥ १८८ ॥ जच्चतवणिज्जपचत्ततणुकयज्जोयपिंजरावयवा । संचारिम व कलहोयघडियधीउल्लिया सहइ ॥ १८९॥ कसिणुज्जल-ललियच्छिच्छडप्पहावरियभूसणकलावा । सोहइ संझायवभिण्णफुडियणीलुप्पलालि व्व ॥ १९० ॥ पाउससिरि व्व पढमुण्णमन्तपीवरपओहराहरणा । वरपोंडरीयवोसट्टलोयणा सरयलच्छि व्व ॥ १९१ ॥ माहवसिरि व्च णिम्मियकोमलकंकेल्लिपल्लवुत्तंसा । उव्वेल्लसरसकरकमलमणहरा महुमहसिरि व्व ॥ १९२ ॥ णिवत्तरोद्दतिलयावलम्बिणी(2) सिसिरवासरालि व्य । उन्भडसवणारणो[व]लक्खिया रिक्खपंति व्व ॥१९३॥ इय रुइररूवसोहग्गसंगयं उग्गया विसालच्छी। णिद्द व(व्य) तरुणजणम(ग)णमउलावियलोयणप्पसरा ॥१९४॥ अण्णं चजीए पवालारुणविष्फुरंतकमलोवमम्मि चलणजुए । लायण्णणिज्जियाए व सिरीए कुसुमच्चणं जणियं ॥ १९५ ॥ वित्थिण्णत्तणनिज्जियसुरसरियापुलिणवियडरमणाहिं । उल्लसइ वयवमुव्वेल्लजयपडाय ब्व रोमलया ॥ १९६॥ गरुयणियंबयडुब्भिण्णसिहिणवठ्ठन्तरालमल्लीणो । मज्झो पीडितो व्व जीए खामत्तर्ण पत्तो ॥१९७ ॥ लायण्णोययसंपुण्णमणहरं सहइ थोरथणवढं । वम्मइणरिंदरायाहिसेयकयकलसजुयलं व ॥ १९८ ॥ सहइ दुहावियवम्महधणुसोहाविन्भमं भुयावलयं । अण्णोण्णणिव्वडन्तोवमाणगुणलद्धमाहप्पं ॥ १९९ ।। बिंबायंबो बहलुल्लसंतसियदसणकिरणसंवलिओ । जीए फुडकुसुमगम्भिणपल्लवसोहाहरो अहरो ।। २०० ॥ इय तीए समं पत्थिवसुयस्स सुररिद्धिविन्भमविलासं । वत्तं पाणिग्गहणं मुहतिहि-णक्खत्त-जीयम्मिः ॥ २०१॥ एवं च णिव्वत्ते पाणिग्गहणे सयलमुहसमिद्धिसंभोयणिब्भरं विसयमुहमुव जमाणस्स गच्छति दियहा। अण्णया य पासायस्स उवरिप्रूमिभाए णिसण्णेण पासयंदेण वायायणंतरालेण पलोइयं णयरीए सम्मुई जाव विट्रो सयलो वि पुरीजणवओ पवरकुसुम-बलिपडलयविहत्थो बार्हि णिग्गच्छन्तो। तओ पुच्छियं भयवया जहा-कि पुण कारणं एस जणवओ पत्थिओ?, कि कोइ छणो ?, किं वा ओवाइयं ? ति । तओ सिर्ट एक्कण पासवत्तिणा पुरिसेण एवंविहं एत्थ किं पि कारणं, किंतु कोइ महातवस्सी कढो णाम किल एत्थ महापुरीए बार्हि समागओ, तस्स बंदणस्थं पत्थिओ इमो जणवओ त्ति । तो तमायण्णिऊण जणियकोऊहलविसेसो भय पि पत्थिओ । गओ जत्थ सो कंटो। दिट्टो य पंचग्गितवं तप्पमाणो । तओ तिण्णाणसंपण्णतणओ मुणियं भयवया एक्कम्मि अग्गिकुंडे पक्खित्ताए महल्लरुक्खखोडीए उज्झमाणं णायकुलं । तं च तहाविहं कलिऊण अच्चन्तकारुण्णोचवण्णहियएण भणियं भयवया-अहो! कट्ठमण्णाणं ति, जेण सुव्वउ जह लहइ पायवो णेय अप्पयं मूलपसरवइरित्तो । तह धम्मो धम्मत्थीण होइ ण विणा दयाए फुडं ॥२०२॥ १ वाहयालीए जे । २ चोयाण सू । ३ हस्तद्वयान्तर्गतः पाठो जेपुस्तके नास्ति । ४ उव्वसइ सू । ५ दुहाविजे। ६ गतटुमा स। . भूमियाणि जे । ८ 'टो संपत्तीपुरओ जण जे । ९-१० कमढो सू । ११ कारुण्णावण जे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464