Book Title: Chaupannamahapurischariyam
Author(s): Shilankacharya, Amrutlal Bhojak, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 348
________________ ५३ पाससामिचरियं । २६५ तो उइयम्मि कुमुयायरबंधवे मियंके पुंजिज्जइ व्व दुमच्छायासु, णिलुक्कइ व्व गिरिकुहरकंदरेसु तिमिरसंघाओ। तो तिमिरपहराउरस्स सयलजियलोयजंतुणो अमयरसच्छड व्व समुच्छलिया चंदिमा। जा य पल्लविय व्व धवलधयवडेमुं, पडिफलिय व्य तरुणिगंडमंडलेसुं, वित्थरिय व्य कुमुयसंडेसु, परिवढिय व्य पासायसिहरेसुं, वियसिय व्व सच्छसलिलासएमुं ति । एवं च चंदिमावियासपसस्यिम्मि भुवणाभोए परियट्टिए कामिणीपियबंधवे पोससमये कामिणीण के वावारा वहिउँ पयत्ता? जं जं चिय सहिकयदइयसंकहो कुणइ पत्तविच्छित्तिं । उप्पसइ तं तह च्चिय सेओ तोसेण व मुहम्मि ॥ २५० ॥ दिट्ठी पल्लष्टइ ताण पेसिया दइयमंदिराहेन्तो । जा ण पलोयइ दुइ व्य सम्मुहं पिययम झत्ति ॥ २५१ ॥ गलइ तरुणीण वम्महसरपहरवियल्लियं व हिययाहि । माणग्गहणं ससियरमउलावियधीरपत्थाणं ॥ २५२ ॥ जायन्ति मुह(?हु) चिय दइयदंसणुच्छलियपुलयकढिणाई। ण उणो मुणन्ति अंगाई गलियमाणं पियाण मणं ॥२५॥ रमणुल्लसन्तवियलन्तकन्ति(न्त)पसरन्तसेयपुलइल्लो । पियदंसणम्मि जाओ रयावसाणे व्व तरुणियणो ॥ २५४ ।। दइयाहि दिण्णमयवसमउलावियलोयणाई घेप्पन्ति । अहरा वारुणिचसय व्व दसणकरकुसुमसंवलिया ॥ २५५ ॥ णिकारणकलहविलक्खकुवियणगणियसहीण संलावो । मयमंथरं णिसम्मइ तरुणियणो सयगवट्ठम्मि ॥ २५६ ॥ इय एरिसे पओसे सिद्धिबहूमुयमणस्स जयगुरुणो । मणयं पिण लहइ च्चिय अवयासं कह वि पंचसरो ॥२५७॥ एवं च विरायरसन्तरुत्तिण्णविसयाहिलासस्स परमत्यमुणियवम्महविडम्बियवस्स परिगलियपिययमाणुरायस्स संसारसरूववियारणासत्तचित्तस्स . समइच्छिओ पओससमओ । विसज्जियासेसपरियणो य णुवण्णो पल्लंके । परिचायकारणुप्पण्णसुहज्झवसाणस्स य से अइक्ता रयणी । ताव य पच्छिमदिसाए फलं व णहतरुणो विलंबियं ससिविंबं, महुसमएणं व लंधिया जामिणी, पच्चूससमएणं मंडणं व वियंभिया दियसलच्छीवयणम्मि अरुणप्पहा, उययसिहरे व्व अत्यमत्थयम्मि जायमायंबिरं ससंकविम्ब । अह विगयचंदिमालोयमउलिरामुक्ककुमुयगहणेहिं । गम्मइ अरुणकरालियकमलवणं भमरवंदेहि ॥ २५८ ।। वित्थारिओ पओसम्मिणिम्मलेणावि जो मियंकेण । सो चिय रविणा विहओ राएण य चकवायतमो ॥२५९॥ णिव्बूढचंदिमाजलकैसिणे वि विलाइ गयणमग्गम्मि । रविणो खुप्पन्तं पिव भएण पंकम्मि गहचकं ॥ २६० ॥ उवसंततारयाणियरकणयरयपिंजरुब्भडच्छायं । दीसइ सिहिगलविब्भममुययटियतरणिमायासं ॥ २६१ ।। ता विप्फुरंतकरजालवियडपडिपुण्णमंडलाहोओ। उन्भासइ भुवणं णेय तिव्वतावं जणेइ रवी ॥ २६२ ।। मयरंदपडलपब्भारपसरैवसउल्लसन्तपम्हाइं । परिमलमिलन्तभमराई कमलसंडाई वियसन्ति ॥ २६३ ।। घडइ एक्ककमं चंचुकोडिकोमलमुणालियावलयं । संगमसंगयगुरुसोक्खपसरसुहियं रहंगजुयं ॥ २६४ ।। इय बालायवपडिभिण्णहंसमुहलम्मि गोससमयम्मि । जायंति तरणिमंडलवियाससोहावियजयम्मि ॥ २६५ ॥ तो तरणिमंडलप्पहाविहूसियम्मि महियले जायम्मि दलियकमलवणसंडसोहम्मि दिणलच्छिमुहे पडिबुद्धो जम्भायन्तवयणदसणप्पहाविहूसियमुहमंडलो भयवं । पवण्णो य सविणओणयविण्णत्तगुरुजणाणुमण्णिवो पणामियजणचिंतियाइरित्तदाणविसेसो दिक्खाविहाणमब्भुवगंतुं । तओ ससंभमुम्मुहमणुयपलोइजमाणदेहाहोया समागया भगवओ पायसमीवं सुरा-ऽसुरगणा । ताव य जायं सुरा-ऽसुरमयं व तिहुयणं । मुरा-ऽसुरविमाणपेल्लणाभएण पडइ व्व णहयलं, सुरकराहयगहिरवजिराउज्जमुहलं रसइ व्य तिहुयणं । एत्थावसरम्मि य कयविविहदेवंगुल्लोयवियाणयालंकिय उवणीयं महल्लं सिवियारयणं । समारूढो तत्थ भगवं । तओ समुच्छलिओ जयजयारवो । एवं च समारूढस्स भगवओ समुक्खित्ता परगणेहि पच्छा सुरगणेहि १ पयत्त जे । २ कसणे विवलाइ सू । ३ 'रबिस सू । ४ ता सुर-असुर-णरगणेहिं सिबिया सू । Jain Education national For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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