Book Title: Chaupannamahapurischariyam
Author(s): Shilankacharya, Amrutlal Bhojak, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 318
________________ ५२ बंभयत्तचक्रवहिचरियं । २३५ अवि यमुरबइबरहत्यपरहत्यसोवण्णकुम्भुच्छलन्तऽच्छखीरोयगीरेण पवालिउद्दाममाणिकसोमाणपंतीसमुत्तिण्णदीहप्पवाहोहयं, पउरसाललपेलणुव्वेल्लसत्तागउम्भिण्णगोच्छुच्छलंतालिमालाकउद्दामझंकारसंसद्दसंपुण्णणीसेसवित्थिण्णवोमंतरालोयरं । अलहुपत्रणणोल्लगऽभिट्टसंघटफट्टन्तवोमिंदणीलुब्भडुब्भूयसाहप्पहोहं विगिंतुद्धधूमोलिजालं व संछाइयासेसणिण्णुण्णय, पिहुलयरपयत्तगीरोहवाहेण वोच्छिण्णहेमच्छलुटंकसंजायभित्तीसु दीसंतणाणाविहाणेयमाणिक्कसोहासमुन्भासियासेसभूमंडलं ।। १७९ ।। किंच कयबहुजणरावमासलिल्लं, सजलघणावलिसद्ददिण्णसंकं । वियडकडतडोज्झरेसु भरन्तं, जिणवरमज्जणयं सुसाहु दिढें ॥ १८० ।। एवं च सुरवइसव्वायरणिव्वत्तियजिणाभिसेयं पेच्छिऊण, अन्तोवियम्भन्तभावणिन्भरं पणमिऊण तिहुयणगुरुणो विविहमणिमए पडिमाविसेसे, थोउं पयत्त म्ह, कह ? उच्छरन्तसंसारभडभडदलणयं, दुण्णिवारकुसुमाउहपहरविमाणयं ।। जणियसंजमुज्जल्लविणिज्जियकम्मयं, दुहसयत्तमवियायणमणकयसम्मयं ॥ १८१ ॥ ___ गुरुवम्महमयमलणयं, दुहसंसारुद्दलणयं । णमिमो भवभयजोहयं, सयलजिणाण कमोहयं ॥ १८२ ॥ तओ एवमादिणा थुइसंबद्धेण थोऊण जिणवरपयपंकए, काऊण पयाहिणं, जाव 'एकपएसम्मि उवविसामि ति चिंतियं ताव पवरासोयपायवस्स हेट्टओ णिसण्णं विगैयरति-रायपसरं कोह-मय-माण-मायमहणं णिरवज्जसंजमुज्जोयसज्जियमई दुर्द्विदियदलिउद्दामदप्पपसरं दुटकम्मणिठुरणिवणकयचेटियं संसारुच्छेयणजणियसमुच्छाहणिच्छयं दिढे चारणसमणर्जुवलं । दसणमेत्तेणेव उवसप्पिऊण पणमियं सायरं । पगमिऊण य निसण्णाण पयर्जुवलसमीवम्मि पत्थुया तेहि धम्मदेसणा, कह ?-- इह जाइ-जरा-जम्मण-मरणुबत्तणपरंपराकलिए । जलकल्लोल व्ध भमंति जंतुणो भवसमुदम्मि ॥ १८३ ।। परलोयणिब्भया दुल्लहं पि लघृण माणुसं जम्मं । अण्णाणमोहिया ण य कुणंति धम्मम्मि णिययमणं ॥ १८४ ॥ शृण ण पेच्छंति इमं जाइ-जरा-विविहवाहिदसपिल्लं । कयविविहजंतुसंताणघायणं मच्चुमुहकुहरं ॥१८५॥ जेण जहिच्छं सच्छंदविलसिउम्मग्गगामिणो मूढा । अच्छन्ति चत्तपरलोयकयहियायरणवावारा ॥१८६ ॥ बहुदुक्खलक्खसंजणियवियणसंतावतारयमणग्यं । गुरुयणवयणं घोट्टेति णेय अगयं व दिजंतं ॥१८७ ॥ जस्स किलिस्संति कए विसयसुहासाहिलासलोहेण । तं पि सरीरं खणभंगि पवण विहुयं व णिवफलं ॥ १८८॥ तह जोवणं पि पवियसियसरयकोजयपसूयसारिच्छं । तस्बिरमे उण विसया मयणुम्मच्छं पिछडेति ॥ १८९॥ जाब पियत्तणसंजणियचाडपरियम्महिययपरिओसा। णियदइया वि हु वयपरिणयाण विवरम्मुहा होइ ॥१९॥ जइ ण को वेरग्गो मणुयाण जरापराहवेणं-पि । ता तरुणिजणयसंभावणाए भणियाण विण जाओ ॥१९१॥ इय जो वि भाइ भइणी भज्जा सयणो व णेहपडिबद्धो । ण हु मच्चुगोयरगयं सो वि परित्ताइउं तरइ ॥ १९२ ।। अण्णं चणिम्भरमयड्ढवियलियकबोलमूलावलग्गदाणेहिं । दुजयजोहेहि व वारणेहि ण य वारिउं तरइ ।। १९३॥ चडुलयरखरखुरुक्खयखमायलुङ्ख्यधूलिपसरेहिं । तुरयारोहेहि वि णिसियसेल्ल-खग्गुग्गहत्थेहि ॥ १९४॥ हस्तद्वयान्तर्गतः पाठो जेपुस्तके नास्ति । २ भयवयजों सू । ३ "माइथुइ जे । ४ विगयरामघसरं संसारुच्छेयणजणिय' मे । ५ संसारवोच्छेयजणियमच्छरुच्छाह सू। जुयलं जे । ७ जुयल जे। ८ हस्तद्वयान्तर्गतेय गाथा जेपुस्तके नास्ति । ९ चाटुस। Jain a n international For Private & Personal Use Only 'www.jainelibrary.org

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