Book Title: Chaupannamahapurischariyam
Author(s): Shilankacharya, Amrutlal Bhojak, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 333
________________ चपन्नमहापारसचारय। संजमुज्जुत्तमाणसो फासुयसेज्जा-ऽऽसण-भत्त-पाणणिरओ धम्मज्झाणणिहित्तचित्तो गमेइ कालं ति । इओ य सो कमढपरिवाइओ सहोयरवावायणेणावि गोवसन्तकसाओ समहियपयट्टज्यवसाणो णियआउयपरिणईए कयपाणपरिचाओ समुप्पण्णो कुक्कुडसप्पभावेणं । संजायसरीरोवचएण सयलसत्तसंहारकारी पयत्तो पुहईए पयरि। परिब्भमंतस्स य तस्स णिवडिओ दिद्विगोयरम्मि सो सलिलाहारणिमित्तमागी वणकरी। पीयं च रवियरपरियावणाफामुयं सलिलं । णिग्गच्छमाणो य भवियव्ययाए खुत्तो महल्लचिक्खल्लम्मि । णित्थामत्तणओ णिग्गंतुमपारंतो गयवरो पुब्बभवुप्पण्णकोवाइसएण य समुप्पइऊण कवलिओ कुंभभायम्मि कुक्कुडभुयंगमेणं । तओ मुणिऊण तन्विहविहाणमत्तणो गयवरो सुमरिऊण गुरुदिण्णोवएसं काऊण चउन्विहाहारपञ्चक्खाणं भाविउं पयत्तो, कह ? सव्वेण वि मरियव्वं जाएण जिएण केणइ निहेण । सयलम्मि जीवलोयम्मि गृणमेस चिय जयठिई ॥ ५५ ॥ ता मरियव्वं जैइ तह विवेइणो होइ जेण जायन्ति । ण उणो पुणो वि कुगतीलंभुन्भडियाइं दुक्खाई ॥ ५६ :: तं तारिसं खु मरणं णवरं धम्माणुहावओ होइ । धम्माण वि जिणधम्मो णारय-तिरियुग्गदुइदलणो ॥ ५७ ॥ संपत्तो सो य मए पुचि सुकयाणुहावसेसेण । सयलसुरा-ऽसुर-सिवसोक्खहेउभूओ जिणपणीओ ॥ ५८॥ ता वोसिरॉमि तिविहेण कसाए हासछक्कयं चेय। राग-द्दोसे अरई दुग्गुच्छं चेव विसयासं॥ ५९॥ एवं संकाईए दोसे 'तिण्णि विणिरागरेऊण । परतित्थपसंसासेवलंछणं छड्डिऊण दढं ॥ ६०॥ संगं सवाहिरऽभितरं तहा अट्ट-रोद्दझाणे य । आराहिऊण दंसण-णाण-चरित्ते महासत्तो ।। ६१ ॥ धम्मज्झाणोवगओ णमो जिणाणं ति सुहसमिद्धाणं । सिद्धाईणं च तहा पुणो पुणुच्चारणसयाहो ॥ ६२॥ इय विहिणा करिराया कालं काऊण तत्थ सुद्धमती । उववण्णो सुरलोगुत्तमम्मि सहसास्कप्पम्मि ॥ ६३ ॥ एवं च मणि-रयण-कणयभवणोवसोहिए णिम्मलफलिहभित्तित्थलणिहित्तणियडपडिबिंबे दसद्धवररयणविप्फुरियकिरणुज्जोइयम्मि सुज्जप्पहविमाणम्मि समुप्पण्णो दियवराहिहाणो सत्तरससागरोवमाऊ सुरवरो । तत्थ य सयलसमीहियसंपत्तिपत्तसोहं विसयमुहमणुहवन्तस्स गओ कोइ कालो। सो वि हु कुक्कुडभुयंगमो अहाउयक्खएणं कालं काऊण समुप्पण्णो विचित्तवियणाउराए पंचमाए गरयपुढवीए सत्तरससागरोवमाऊ चेय णारओ त्ति । तत्थ य छिंदण-भिंदण-विद्धंसण-सूलेरोहणादीणि । कर-चरण-कण्ण-जीहोट-णासियाछिंदणदुहाणि ॥ ६४ ॥ तह कूडसामलीविलइयचकयकुंभिपायपउराई । करवत्तदन्तफालणदुहाइं इय एवमादीणि ॥६५॥ उवभुंजन्तस्स तहिं णिविसं पि ण होइ पाववसयस्स । वीसीमो अहियं कमढजंतुणो णिरयमज्झम्मि ॥ ६६ ॥ इय पावपरिणइं भाविऊण मणुएहि मणुयजम्मम्मि । तं कायध्वं ण य हौति जेण णिरयाई दुक्खाई ॥ ६७॥ इओ य सो सुरवरो णियआउयावसाणम्मि दियलोयाओ चुओ समाणो समुप्पण्णो इहेव जंबुद्दीवे दीवे पुष्वविदेहे खेत्तम्मि सुकच्छविजए वेयड्ढणगवरम्मि तिलयणामाए णयरीए विज्जुगतिणामहेयस्स खैयराहिवइणो कणयतिलयाहिहाणाए वरग्गमहिसीए उदरम्मि पुत्तत्तगणं । जाओ कालकमेणं । पइटावियं च णामं किरणवेगो ति । वढिओ देहोवचएणं कला-गुणेहिं च । संपत्तो जोवणं । तओ सो विज्जुवेगखयरीसरो पणामिऊण णिययपुत्तस्स रज्जं पवण्णो सुयसागरगुरुसमीवम्मि पव्वजं । .' सो विहु किरणवेगो सुररायविच्छडुविन्भमं भुयबलुइलियासेसपडिवक्खलक्खं मुइरं रायलच्छिं भोत्तूण दाऊण किरणतेयणामस्स णिययपुत्तस्स रज्जं पवण्णो सुरगुरुमुणिणो समीवम्मि पन्चज । अहिन्जिय मुत्तं, अन्भुवगओ पारयंतो जे । २ जइ इह वि जे । ३ हुजे। ४ वोसरामि सू। ५ चेव जे । ६ तिण्ड स। . सुरलोए उत्तमसहसा जे । ८ मणि-कण सू। १ लरोवणाईणि जे । १० वीसासो सू । ११ खइरा सू। १२ 'म्भमेणं भुजे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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