Book Title: Chaupannamahapurischariyam
Author(s): Shilankacharya, Amrutlal Bhojak, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 330
________________ २४७ ५३ पाससामिचरियं । चौजमिणं तं तारिसवित्थारियतरलतडिविलासिल्लं । परिगलियं कह खगगलियसोहमियमुयह घगजालं १ ॥१४॥ सवाण वि एस गती जयम्मि भावाण संभवन्ताण । संसारे बहुविहदुक्खलक्खखयसोक्खपसरम्मि ॥१५॥ जेण जुवाणत्ते णियमुरूयसोहग्गगविएण दढं । परिसकिज्जइ उम्मुहवित्थारियगयणमग्गेण ॥ १६ ॥ तेणेय जराजन्जरपरिणामोअल्लतणुविहाएग । अग्णंसाऽऽसत्तकरेग णीसहं वेविरंगेण ॥ १७॥ णयणाई जाइं लीलापलोयणोप्पियमयाई तरुणीण । आसि पुणो वयविरमम्मि ताई अण्णारिसाई व ॥ १८॥ सवणा जे आसि कलुल्लसन्तगंधवलालसा सुइरं । सग्णाविहावियत्या वयपरिणामम्मि ते चेय ॥ १९ ॥ जो आसि भमिरभमरंजणुज्जलो कसणकेसपन्भारो । सो चेय विसयवोसट्टकासकुसुमप्पहो होइ ॥ २० ॥ 'इय सव्वस्स वि वयपरिणईए जायंति जंतुणो भावा । एयारिस' त्ति कलिऊण तेण धम्मुज्जमो जुत्तों ॥ २१ ॥ अण्णं च जीवो अणादिबहुभवकालज्जियगरुयकम्मसंताणो । परिभमइ दुहसयावत्तदुग्गमे भवसमुद्दम्मि ॥ २२ ॥ णरयम्मि णिययकयकम्मवसपरब्यसपगामियप्पाणो । अणुहवइ विविहसत्थाहिघायसंजणियवियणाओ ।। २३ ॥ तिरियत्तणे वि वाहण-डहणं-उंकण-कण्णकप्पणादीणि । अणुहवइ विविहदुक्खाई खु-प्पिवासापरिस्संतो ॥ २४ ॥ माणुस्सम्मि वि दारिद्ददोस-दोहग्गदूसियावयवो । जम्मं विसयासासंपडतदुहिओ समागमइ ॥ २५ ॥ अह कह वि विसयसंपत्तिपत्तसोक्खो खणं मुही होई । पियविरह-ऽप्पियजणसंपओयजणिय दुहं लहइ ।। २६ ।। देवत्तणे वि दट्टुं महिड्ढि-सक्काइणो सुरसमूहा । जणियाहिओग्गमीसावसाइयं लहइ बहु दुक्खं ॥ २७ ॥ इय एरिसम्मि वित्थयदुहणियरपरंपराविसालम्मि । संसारे सविवेयस्स कस्स वा होज ण विराओ ? ॥२८॥ तओ एवंविहं परियत्तियरसभावन्तरं णरवई दट्ठण भगिउं पयत्तो सयलो वि सुंदरीयणो जहा-अजउत्त! किमेयमयंडे चेव तुम्हाण एरिसमसमंजसं जंपियं ? जेण दरिसियरसंतरायारो पल्लट्टियरूको विव लक्खिज्जसि, कर्हि गया ते तुह तरलतारउव्वत्तलोललोयणा दरफुरन्तपम्हपडला पलोइयत्ववियारा ?, कर्हि वा विलासकयभूभंगविन्भमुब्भेयभूसणपरम्मुहो भालमग्गो ?, कहि वा ववएसजंपिउप्पण्णबहुपियप्पयप्पयारपउराई पवरजंपियवाई?, कहिं वा हिययभितरपवियंभिउब्भडुकंठसिट्ठलट्ठसंठाणो रमियन्याहिलासो ? ति, ता केण वा दंसियं तुम्हाण विलीयं ?, केण वा कयमाणाखंडणं ?, केण वाऽवरद्धं ? । ति भणमाणस्स दइयाजणस्स भणियं परवडणा-ण खलु तुम्हाण केणावि पडिकूलमायरियं, किंतु सव्वमेयमवितहं संसारविलसियं संभाविजइ, जेग कम्मपरिणइवेंसगयस्स जंतुगो पिओ वि अप्पिी , अणुकूलो वि पडिकूलो, सुयणो वि दुजणो, मित्तो वि सत्तू, संपया वि आवया, कलत्तं पि गोत्ती, रज्जं पि मच्चु त्ति । कह ? जह पवरचित्तभित्ती सलिलुप्पुसिया ण देइ परभायं । तह जर-मरणालिद्धं तणू वि सोहं ण पावेइ ॥ २९ ॥ जह णिण्णयाओ उवहिम्मि ण य णियत्तन्ति णिवडियाओ पुणो । तह ण पुणो पल्लति तणुम्मि रूवाइसोहग्गं ॥३०॥ जह उग्गओ रवी णहयलम्मि ण खणं पि णिश्चलो होइ । तह तारुण्णं जीवाणं होइ ण थिरं मुहुत्तं पि ॥३१॥ मारुयविहट्टियं णेय होइ जह तरुदलं खणं पि थिरं । तह विविहवाहिकलियं जियाण जीयं जए ण थिरं ॥३२॥ जह सुसियपायवे णेय होन्ति वेल्लहलपल्लवुप्पीला । विसयविलासा जायन्ति णेय तह परिणए देहे ॥ ३३ ॥ १ 'यगमणम जे । २ 'हाणेण सू । ३ ॥२१॥ इच्चैवमादि बहुहा अणिच्चाइभावणागणं भावयन्तो भणिओ सयलतेउरसुंदरीहि जहा-अजउत्त! किमेयमकंडम्मि चेय तुम्हाण एरिसमसमंजसं जंपियं? जेण दरिसियरसंतराउरो य पल्लष्ट्रियसवो इव लक्खिग्जसि, परिहरियसय. 'लहावभावो हिंययम्मि किं पि चिंतयंतो चिट्ठसि, ता केण वा दसिय तुम्हाण विलीयं ! केण वा जे, (२८ गाथानन्तरम्) । ४ तुम्ह के सू। ५ 'वसमुवगयस्स जे। Jain Education International For Private & Personal use only . www.jainelibrary.org

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