Book Title: Chaupannamahapurischariyam
Author(s): Shilankacharya, Amrutlal Bhojak, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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५२ बंभयत्तचक्कवटिचरियं । बटुंति, णालबइ सहियणं, ण वाहरइ चिरपरिचिए पंजरसुए, ण चारेइ भवणकलहंसणिवहे, ण परिभमइ भवणुजाणपायवेसं. ण मज्जइ घरदीहियासं, णालिहइ चित्तवट्टियाहिं, ण संजणइ पत्तच्छे जं, ण बहुमण्णए आहरणविसेस, णो कुणइ वीणाविगोयं, णोहिणंदइ सरीरहिइं, णाहारमभिलसइ त्ति, केवलमंतोणिरुम्भमाणुव्वेवणीसासणिहित्तसूइयावेया थलगयमच्छुस्थल्लिय व तल्लुव्वेल्लं कुणमाणा अम्हाण मणुव्वेवमावहइ । तओ मए भणिया-पुत्ति! - कीस उणो तुम्ह(ह) मुहकमलपरिमलल्लीणपेल्लियालिउला । पसरंति गरुयपरियावसंसिणो दीहणीसासा? ॥ १५० ॥
एवं कीस वियंभियहिययावेउल्लसंतसेउल्लं । वयणं मिलाणलायण्णकतिपसरं समुबहसि? ॥ १५१ ॥ परिमंदमारुउव्वेल्लचटुलचूयग्गपल्लवालोलं । किं दीहरसासाऽऽयासधूसरं वहसि अहरदलं ? ।। १५२ ॥ एयं लसंततवणिज्जपिंजरप्पहबिहावियकवोलं । पुलयविमुक्कमणि( ? णी)कणयकुंडली(लं) कीस कण्णजुयं ? ॥ १५३ ॥ परियलियमुह[ल]मणियाणुरावसंवलियकंठपरिणाहो । णारुहइ कीस रमणो व्ध सुयणु ! थणमंडलो(ले) हारो ? ॥१५४॥
कोस मुहाऽऽचलणुव(ध)त्तणीसहोमुकसिढिललडहाई । अविलक्खपरित्ताणाई सुयणु ! सीयंति अंगाई ॥ १५५ ॥ परियणपुरओ सुंदरि ! पलावलज्जावियाए तुह कीस । जायंति तुलियदरमलियकमलसोहाई हसियाई? ॥ १५६ ॥
इय सुयणु ! साह मह सय ल[णियय]वु वुत्तंतमवितहं कलिउं ।
मुहिहिययम्मि विरित्तं होइ दुई स(सु)यणु! सुहवोज्झं ॥१५७ ॥ एवं च बहप्पयारं भण्णमाणा विण किंचि देइ पडिलावं, तहेव चिट्ठइ । तओ मए करयलेण परामुसिऊणमुत्तिमंगं, पुसिऊण सेयसलिलोल्लं वयणणलिणं भणिया य-पुत्ति ! किमेयं जोगिणि व्व जोगम्भासरया चिंतेसि ? । सा वि हु असाहणीयमत्तणो वियारमुवलक्खिऊण लज्जोणयवयणमंडला ईसीसि विहसिऊण णिवडिया मह उच्छंगे। तो मया णियपाणिपल्लवेण परामुसिऊण अंसप्पएसे सामपुव्ययं पुच्छिज्जमागी लज्जापरव्यसत्तणओ जाहे ण किंचि समुल्लवइ ताहे तीए चेव बालसही पियंगुलया णाम छाय न खणं पि पासाओ णोवरमइ बीयं पिव हियवयं, तीए भणियंभयवइ ! एसा खु लज्जापरवसत्तणओ ण तरइ साहिउं, अहं तुह साहामि-अस्थि इओ य अतीयकइचयदिणम्मि इमीए भाउयस्स बुद्धिलसेठिणो सागरदत्तसेटिणा समं सयसहस्सपणियं कुक्कुडवारं । तत्थ पेच्छियव्ययकोउहल्लत्तणी गयाए दिट्ठो अमरकुमरो व मणोहरतणू, मयरकेउ व्य जणियमयणपसरो, मयलंच्छणो म संजणियजणमणाणंदो. मयरायरो व णिचडियसिरिवच्छासओ, घणसमओ व्च णिव्ववियमहियलो, सरयसमो व्व वियसावियकमलायरो. हेमंतसमओ व्ध परिमलियसयलसासो, सिसिरसमओ व्व संकोडियवेरिवयणकमलो, वसंतमासो व्च रमणीयदंसणिज्जो, णिदाहसमओ व्य संतावियधरणिहरो एको पवरजुवाणो । सो य अणिमिसलोयणाए चिरं पलोइओ। तप्पभिई किं पि ज्झायमाणी ण कीलइ अंदोलएण, ण कुणइ संगीययं, दीहरपरिस्समणीसह व्व सयणीयम्मि मुयइ अत्ताणयं, परिमंदचंदणदाहि पि परितप्पए, कमलदलछिक्का वि मुच्छमावहई (इ), दरफुरंताहरपुडा रोमंचकंचुचइयबाहुलइया सेयसलिलगलियंगरायरंजियपच्छयणवडा विउज्झए णिदाविरामम्मि वि कह कह वि, आहासिया विण] पडिलावं देह । तं च मे सोऊण लक्खिओ से मयणवियारो, भणिया य सा मए बहुप्पयारं । तओ कह कह वि सम्भावमुवगया, भणइ यभयवइ ! तुम मह जगणी, अहवा पहाणसही, अहवा इट्टदेवयं, तं किं पि णस्थि जं ण होहिसि ति, ता किं तम्ह वि अकहणीयमस्थि ?, जो इमाए पियंगुलयाए सिट्ठो सो मह विमुक्ककुसुमचावो व्व कुसुमाउहो सहसा हिययमइगओ, किं बहुणा ?, जइ तं कइवयदिणभिंतरम्मि ण संजोएसि ता अवस्समहमप्पाणयं साहारि ण पारेमि त्ति । एयमायणिऊण भणिया सा मए जहा-वच्छे ! धीरा होहि, तहाऽणुटिस्सं जहा तुह समीहियं संपजिस्सइ । तओ सा पढमजलविंदपव्वालिय व वसुमती निव्वुया संजाया । अतीयदिणम्मि य साहियं मए तीए जहा-दिवो मए बम्भयत्तो। एय
१ णाऽऽणदइ स । २. केवलं किं पि शायमाणा चिटुइ त्ति । तओ मए सयलं पि सहीहि कहियं वइयरं पच्चुत्तरतीए पुच्छिया जावण पडिलाव देइ तहेव चिटुइ सि । तो करयलेण परामुसिऊणुत्तिमंग, पुसि जे, (१५७ गाथानन्तरम् ) । ३. विहरिऊण जे । 'चि उल्लवइ स्। ५ तणू एको पवरजुवाणो । तप्पभिई चेय तग्गयमणा अणाविक्खणीयमवत्थंतरमणुहवती चिट्ठइ सि । एवं च मए सोऊण लविखओ से मयणवि.
यारो। तहाविहवयणविण्णासेण य भणतीए कहाविया सयलं पि णिययाहिप्पायं । भणिया य सा मए जहा-वच्छे। धीरा होहि, तहाले। Jain Edur६ मथा-स al
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