Book Title: Chaupannamahapurischariyam
Author(s): Shilankacharya, Amrutlal Bhojak, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text ________________
५२ बंभयत्तचक्कवहिचरियं ।
२१७ तत्तो य णिययाउयक्खएणं चुओ समाणो हं पुरिमतालणयरे गुणपुंजयाहिहाणस्स सेविणो णंदाए परिणीए समुप्पण्णो कुच्छिम्मि, जाओ कालकमेण, संवढिओ देहोवचएण, संपत्तो जोवणं । तओ अहं अणहेमु वि सयलिदियस्थेसु, साहीणेमु वि विसओवभोगेसु, असज्जमाणो सोऊण धम्मं साहुसमीवम्मि पन्चज्जमभुवगओ। विहरमाणो य इहइं संपत्तो। एस्थढिएण य उज्जाणवालवयणाओ पाढविसेसं सुणिऊण जातीसरणमुप्पणं । ता ण याणामि 'छट्ठीए जातीए विओओ कहमम्ह जाओ?" ति।। ___ बंभयप्तेग भणियं-"भयवं ! अहं जाणामि । तम्मि अबसरे साहुणो सयासाओ भरहाहिवईणं चकहराण रिद्धिवष्णणमायण्णिऊण सुणंदासणारं अंतेउरं पुलोइऊण धीदुब्बलयाए 'सलाहणीओ चक्कवट्टिविहवो ममं पि एस संपज्जउ चि जइ इमस्स तवस्स किंचि सामत्थमत्यि' [त्ति] हियएण चिंतिऊण कयं णियाणं ति । तओ ण पडिकतो तयज्झवसायाओ, ण गिदिओ णिययाहिप्पाओ, ण गरहियं हियएण, णियाणबलवत्तणो कालं काऊण इहइं समुप्पण्णो । परिणयं छक्खंडभरहा हिवत्तणं । संपत्ता सुरवरसमाणा रिद्धी । ता तुम्हाणं पि अज्ज वि अहिणवं जोवणं, कालो रइविलासाणं, कीरन्तु सकामा कामा । ते य संजणियसयलिदियत्या संपर्जति संपय साँहीणे ममम्मि सेहोयरे । घेत्तूण रह-तुरय-गईदाइयमद्धं पुहइरजस्स विलसिज्जउ जहिच्छं, लालिज्जउ तवविसेससोसियं सरीरमण्ण-पाणाईहिं, पीणिज्जंतु सयलिदियस्था, सेविजंतु सद्दाइणो विसया, संतोसिजउ भयवं मयरद्धओ । पच्छा वयपरिणामम्मि पुणो वि पध्वज गेण्हसु ति । अण्णं च
को तीए गुणो मणुयाण मणहराए वि रायरिदीए ? । जत्थ परमत्थबंधवजणस्स सोक्खं ण संजणियं" ॥४८॥
तओ एयमायण्णिऊण साहुणा भणियं-"भो णराहिव ! संझारायजलबुब्बुओवमे जीवियम्मि कस्स विवेइणो भोयणं पि रोयउ ?, रमियब्वयं तु मणहरभोएहिं दूरे चिय ताव चिट्ठउ त्ति । अण्णं च
तणसिहरलग्गसिण्हातुसारतरला इम च्चिय जणेइ । लच्छी पवरवियप्पाण शृणमसइ व्च वेरग्गं ॥ ४९॥ घणघडियविहडियण्णण्णवण्णरायाण तणुइजुबईण । सुरघणुरेहाणं पिच पडिबंधं कुँणउ को व बुहो? ॥५०॥ अणभिप्पेयम्मि वि संघडंति विहडंति सम्मए विजणे । चलविज्जुविलसियाई व णेय पेम्माइं वि थिराई ॥५१॥ इय मुणिऊणेवंविहमसारसंसारविलसियं सहसा । अथिरम्मि विसयसोक्खम्मि भणह कह कीरउ थिरासा ? ॥५२॥ तहा जं भणियं 'अज्ज वि अहिणवं जोव्वणं' ति तं णियच्छमजिणवयणमुणियतत्ताण सयलकिरियाकलावसंजत्तिं । संजणइ जोवणे चेव संजमो बलसमत्याण ॥५३॥ 'कालो रइविलासाणं' तिजं भणियं तं पि सुबउबहुसुक्कपंकरुहिरालयम्मि बीभच्छदंसणिजम्मि । पमुहरसिए रइमुहे विरामविरसम्मि को राओ ? ॥ ५४॥ जं भणियं 'कीरंतु सकामा कामा' तत्थ वि सुणसु कारणं तिखणसंघडंत-विहडंतकयपरायत्तकारणसुहासा । बहुजणियविप्पलंभा छलंति कामा पिसाय व्व ॥ ५५ ॥ जं च भणियं 'ते य मैंमम्मि सहोयरे साहीणरज्जे संपज्जन्ति' तिरजं पि चलं जइ कह वि जणइ जणियाहिमाणसोक्खाई । एकम्मि चेव जम्मम्मि णेइ णिहणं भवसयाई ।। ५६ ॥ जंच भणियं 'विलसिज्जउ जहिच्छं' तिके व विलासा पसरियसहावदुग्गंधगंधदेहाणं । मणुयाण कारिमाणियसरीरसोहाण मणुयत्ते ? ॥ ५७ ॥ जं च भणियं 'लालिज्जउ सरीरयं' तं पि सुबउदेहेण णिसण्णासण्णवाहिवियणाकयंतकलिएण । धुवमधुवेण लब्भइ मोक्खसुई कि ण पज्जतं? ॥ ५८ ॥ 'पीणिज्जतु सयलिंदिय' त्ति जमुल्लवियं तं पि सुण
जमुवगओ सू। २ छट्टियाए जे। ३ मम्हाण जाओ जे। ४ सुभद्दास सू । ५ पलोएरण घिदुच जे । तस्सऽज्यवसू। . साहीणं जे । ८ मम पि सूजे । सहोयर जे। १० तणुतणसिहागसिहा जे । ११ तयणु(णुयोजुसू । १२ कुणइ जे। १३ 'ति ण पंडति संजे। १४ ममं पि सूजे ।
Jain Education Interfonal
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464