Book Title: Chaupannamahapurischariyam
Author(s): Shilankacharya, Amrutlal Bhojak, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 125
________________ ४२ चउप्पन्नमहापुरिसचरिय णयरीए पुरिमतालस्स लहुं चेव पत्तो भरहाहिवो तमुद्देसं जत्थ सामी समोसढो। दिट्ठो य दूराओ चेव पणयजणऽभुद्धरणसमत्थो अभयदाणपवत्तो हत्थो व्च भयवओ धम्मद्धओ । अवलोइयं च सहस त्ति कणयकिंकिणीजालमालाकयकोलाहलेणं पवणवसुच्छलियवलियवेविरधयवडसमूहेणं अयत्तपत्तजयणाहसंगमुधुयवेल्लहलभुयासहस्सेणं व णच्चन्तं महिमंडलं तिपायारोववेयं छत्तत्तयसणाहं असोयवरपायवाहिटियं तियसा-ऽसुरविरइयं समवसरणं । दळूण य सहसोवयंततियसा-ऽसुरिंदुविहियभूसणकलावपहासंघाउत्थइयतरणिमंडलं 'विम्भउप्फुल्ललोयणो देहभरुव्वरन्तपरिओसो भरहाहिवो मरुदेवासामिणी सपणयं भणिउमाढत्तो-अम्ब ! पेच्छ भुवणगुरुणो जयभूसणस्स रिदिविसेसं, एयं च मह णियन्तस्स तणाओ तणुअयरी णियसंपया पडिहाइ । णिसुओ य मरुदेवासामिणीए सुरा-ऽसुर-गर-विज्जाहरजयजयारवो, णिसामिया य अमयमती विर्व पल्हायन्ती जणमण-सवगिंदियविसेसे तित्थयरवाणी । तो णिसामिऊण वाणी वियलिओ कम्मरासी, ववगयं मोहजालं, उल्लसिओ सुहाणुभावो, पणटं तिमिरं, पेच्छिउमाढत्ता विम्हयजणए भयवओ अइसयविसेसे । आढत्ता चिंतिउं–“ अवस्सं तिहुयणऽभहिओ मह पुत्तो, कहमण्णहा विवेइणो विबुहा सुस्मुसापरायणा भविस्संति ? ति । एरिसाण य तिहुयणपडिबोहणणिमित्तं करुणावज्जियहिययाणं भवसंभवं कुणंताणं उवगरणणिमित्तं जणणि-जणयाइयं । एवं च ठिए को हपडिबंधावसरो ?, ता दुट्ठ कयं मए पुचि जं णेहमोहियाए विलवियं । संसारे संसरंताणं कम्मवसगाणं जीवाणं सबो सबस्स पिया माया बंधू सयणो सत्तू दुज्जणो मज्झत्थो" त्ति । एयं च चितयंतीए उत्तरुत्तरमुहऽज्झवसायारूढसम्मत्ताइगुणहाणाए सहस त्ति पावियाऽपुचकरणाए पत्ता खवगसेढी, खवियं मोहजालं, पणासियाणि णाण-दंसणावरण-उतरायाणि, समासाइयं केवलणाणं । तयणन्तरमेव सेलेसीविहाणेणं खवियकम्मसेसा गयखंधारूढा चेव आउयपरिक्खए अंतगडकेवलित्तणेणं सिद्धा। 'इमीए ओसप्पिणीए पढमसिद्धो' त्ति काऊण कया देवेहि महिमा । विण्णाओ य एस वुत्तंतो भरहाहिवेणं तियसाऽसुरसयासाओ। तओ विम्हय-सोय-कोऊहलभरियमाणसो दूराओ चेव उज्झियरायचिंधो सपरिवारो य पायचारी पत्तो समोसरणं , पविठ्ठो य पुव्वदुवारेणं । सीहासणोवविठ्ठो दिट्ठो भुवणगुरू । तिपयक्षिणीकाऊण य थुणिउमाढत्तो जय मोक्खपहपयासय ! जय जय संसारजलहिबोहित्थ!। जय घोरणरयपायालवडणपडिरुम्भणसमत्थ ! ॥१२७॥ जय विसयविसमहोसहि ! जय घणकम्मट्टगंठिणिठवण! जय सयलभुवणभूसण! जय वज्जियऽवज्जसब्भाव !।।१२८॥ जय सेजलजलहरोरालिगरुयमुइसुहयमहुरणिग्धोस !। जय सयलछिन्नसंसय ! संसियकयसासयसुहेस! ॥१२९ ॥ जय गरुयभवभयुप्पित्थसत्तसत्ताणदाणदुल्ललिय!। जय भुषणभरियजसगुणणिहाण! जय णिज्जियाणंग! ॥१३०॥ जय झाणाणलॅपयवियणीसेसविसेसपावसब्भाव ! | जय पणयनागवद्धण ! जय जय जयबंधव ! मुणीस ! ॥१३१॥ जय कोहकसण ! जय माणमलण ! जय मायमहण ! मुणिणाह !। __ जय लोहग्गहणिग्गह ! जय मिच्छुच्छायणसयह ! ॥१३२॥ जय तियसा-ऽसुर-णरणाहमउलिमणिणिहसमसिणकयपीढ !! जय कयसयलसुसंगय ! जय धम्मपयासियपयत्थ! ।।१३३॥ इय सो(थो)ऊण ससंभमभत्तिभरुच्छलियबहलरोमंचो। णरणाहो जयणाहस्स चलणजुयलं समल्लीणो ।। १३४ ॥ तओ भगवया पत्थुया धम्मकहा, परुवियाणि पंच महब्धयाणि, पव्वाविया उसभसेणपमुहा चउरासी गणहरा। उसभसेणगणहरेण य भरहस्स पंच पुत्तसयाई, सत्त य, णत्तुयसयाई, बम्भी य, तम्मि चेव समोसरणे पव्वावियाणि । तओ य भगवं वोहंतो भवियकमलायरे विहरिउमाढत्तो। इओ य भरहाहियो समुप्पन्नचोदसमहारयणो अणेयणरणाह-सामन्तचक्कपरियरिओ अत्थाइयामंडवे मुहासणत्यो विष्णत्तो ससेणाहिहाणेणं णर(? सेणा)वडणाजहा-"देव ! विण्णायसयलसत्थऽस्थस्स अवगयलोयववहारस्स परिच्छियरायगीतिसारस्स भँवओ उवएसप्पयाणं चवलत्तणं, तहा वि जं भवओ ममोवरि बहुमाणो तेण भण्णसि-देव ! पदिदिणमखंडियपयावो दसम वि दिसासु वित्थारियतेयप्पसरो सूरोणेइ सुहेण वासरे। तेयरहियस्स उण हरिणहिययस्स पंडरउद्वियस्स मय मंछ १ यधवलिय" जे । २ अपत्तपतं जय जे। ३ सुरिंदनिव्वडियभू जे। ४ विम्ह जे । ५ विसेसो जे । ६ विय जे । ७ एवं जे। ८ °य निज्जिय जे । ९ सयल जे। १. लविहुणियणी जे। ११ यमाणबंधण! सू । १२ लोहग्गनिरुभण ! जय मि जे। १३ परिचियरायनीयसार सू । १४ भगवओ जे सू । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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