Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१३३
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[मकारादि
होनेके बाद जो निशान रह जाता है वह दूर हो काली मिर्च, सेंधा, पीपल, तगर, कटेलीके कर त्वचाका रंग ठीक हो जाता है। फल, चिरचिटेकी जड़, तिल, कूठ, जौ, उड़द, (५३६०) मनःशिलादिवत्तिः सरसों और असगन्ध । सबका समान-भोग-मि(व. से. । बिषरोगा. )
श्रित महीन चूर्ण शहदमें मिलाकर लेप और मर्दन मनोहासैन्धवं हिङ्गुजातीपत्रं सनागरम् ।
| करनेसे लिंग बढ़ता, स्तन पुष्ट (मोटे) होते और गोशकृद्रससम्पिष्टं गुटिका वृश्चिकातिनुत् ॥
भुजा तथा कान मांसल हो जाते हैं । ____ मनसिल, सेंधानमक, हींग, जावित्री और (५३६३) मरिचादिलेपः (२) सोंठका चूर्ण समान भाग लेकर सबको गायके
(यो. र. । शिरोरोगा.) . गोबरके रस में घोट कर गोलियां बना लें। मरिचं भृङ्गजद्रावैर्मरिचं शालितण्डुलैः ।
इन्हें ( गायके गोबरके रस या पानीमें ) धिस | अर्धशीर्षव्यथां हन्ति लेपो वा शुण्ठिवारिणा ॥ कर लगानेसे बिच्छूका विष उतर जाता है । ___ काली मिर्चके चूर्णको भंगरेके रस अथवा
(५३६१) मरिचादिगुटिका चावलेोके पानीके साथ पीसकर या सेठको पानीमें ( वै. म. र. । पटल १६)
घिसकर लेप करनेसे आधे शिरकी पीड़ा शान्त मरिचस्य हरिद्रायाः शुण्ठया वा
होती है। रेणुभिः कृता गुलिका। (५३६४) मरिचादिलेपः (३) तैलाक्ता संलिप्ता ललाटपट्टे शिरोरुजं हन्यात् ॥ (यो, र.; व. से. । नेत्र रोगा.)
काली मिर्च, हल्दी, सोंठ और रेणुकाका सञ्चूर्ण्य मरिचाक्षे च रजन्या रसमर्दिते । समान भाग मिश्रित बारीक चूर्ण लेकर (पानीमें लेपनादर्मणां नाशं करोत्येष प्रयोगराट् ॥ घोटकर ) गोलियां बना कर छायामें सुखा लें।
हल्दीके स्वरस या काथमें काली मिर्च और इन्हें पीसकर तेलमें मिलाकर मस्तक पर लेप बहेड़ेके समान-भोग-मिश्रित चूर्णको पीसकर लेप करनेसे शिरपीड़ा शान्त हो जाती है। करनेसे अर्म नामक नेत्ररोग नष्ट होता है। यह
(५३६२) मरिचादिलेपः (१) । एक अत्यन्त प्रभावशाली योग है। ( शा. सं. । उ. खं. अ. ११)
(५३६५) मरिचादिलेपः (४) मरिचं सैन्धवं कृष्णा तगरं बृहतीफलम् ।।
(व. से. । क्षुद्ररो.) अपामार्गस्तिलाः कुष्ठं यवा माषाश्च सर्षपाः॥ इन्द्रलुप्ते शिरां मनि स्निग्धस्विन्नस्य मोक्षयेत। अश्वगन्धा च तच्चूर्ण मधुना सह योजयेत् । कल्कैः समरिचैर्दिवाच्छिलाकाशोसतुत्यकैः ।। अस्य सन्ततलेपेन मर्दनाच प्रजायते ॥ इन्द्र लुप्त (गंज) रोगमें पहिले रोगीको यथालिङ्गद्धिः स्तनोत्सेधः संहतिर्भुजकर्णयोः॥ विधि स्निग्ध और स्विन्न करके शिरमें शिरावेध
For Private And Personal Use Only