Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसपकरणम् ]
चतुर्थों भागः
५४७
सुषेषितं वारितरं जायते नात्र संशयः। . १ भाग शुद् पारद, २ भाग शुद्ध गन्धक अनेन विधिना कार्य सर्वलोहस्य साधनम् ॥ | और तीन भाग बुद्र लोह चूर्णको एकत्र मिलाकर जायते सर्वरोगनं सेवितं पलितापहम् ॥ २ पहर घृतकुमारीके रस में घाटें और फिर उसका
शुद्र लोहचूर्णको घीसे चिकना करके लोहे- गोला बना कर उसे अरण्डके पत्तोंमें लपेट कर की कढाईमें इतना तपावें कि वह आगके समान | उस पर सूतका डोरा लपेट दें और फिर उसे लाल हो जाय । इस बीचमें उसे निरन्तर लोहे के ताम्रसम्पुटमें बन्द करके उसकी सन्धिको मिट्टीसे करछेसे चलाते रहना चाहिये । तदनन्तर उसे बन्द कर दें, एवं उसे सुखाकर अनाजके ढेरमें लोहेके खरलमें डाल कर घोटें और फिर पुनः घीसे दबा दें। तीन दिन पश्चात् सम्पुटमेंसे लौहको चिकना करके कढ़ाई में पकावें । इसी प्रकार ५ बार | | निकालकर पीस कर कपड़ेसे छान लें। पाक करने के पश्चात् उसे त्रिफलाके काथमें घोट | यह लोह भस्म हंसके समान पानी पर तैरती कर शरावसम्पुटमें बन्द करके गजपुटमें पकावे । है । इसका नाम " सोमामृत लोह भस्म" है। इसी प्रकार त्रिफला काथमें खरल करके ४ पुट
नोट -कई ग्रन्थोंमें उक्त गोलेको अनाजके देनेसे लोहकी वारितर भस्म हो जाती है। ... इसी विधिसे समस्त प्रकारके लोहोंकी सर्व
ढेरमें दबानेसे पूर्व, ताम्र पात्रमें रख कर २ पहर रोग हर और पलितनाशक भस्म तैयार हो
तक धूपमें रखने के लिये लिखा है। जाती है।
। (६४१६) लोहमारणम् (१०). (६४१५) लोहमारणम् (९)
(र. म. ; यो. र. ; रसें. सा. सं. ; आ. वे. (र. म. ; यो. र. ; र. र. स. । अ, ५ प्र. । अ. ११, शा. सं. । ख. २ अ. ११; भा. रसे. सा. सं. ; आ. वे. प्र. । अ. ११; शा. सं.। प्र. । प्र. खं. ; वृ. यो. त. । त. ४१) ख. २ अ. ११; भा. प्र. ; रसें. चि. म.।।
द्वादशांशेन दरदं तीक्ष्णचूर्णस्य मेलयेत् । अ. ६.; वृ. यो. त. । त. ४१)
| कन्यानारेण संमर्थ यामयुग्मं तु तत्पुनः ॥ शुद्धस्य सूतराजस्य भागो भागद्वयं बलेः। द्वयोः समं सारचूर्ण मईयेत्कन्यकाम्बुना ।।
शरावसम्पुटे कृत्या पुटेद्गजपुटेन वै । यामद्वयं तस्य गोलं संवेष्टयैरण्ड गर्दलैः। सप्तधैवं कृतं लोहरजो वारितरं भवेत् ।। ततः सूत्रेण संवध्य स्थापयेत्ताम्रसम्पुटे ॥ १२ भाग तीक्ष्ण लोहके शुद्ध चूर्णमें १ भाग संमुद्य वदनं तस्य मृदा संशोष्य तत्पुनः। | हिंगुल मिला कर उसे २ पहर घृतकुमारीके त्रिदिनं धान्यराशिस्थं तत उद्धृत्य मर्दयेत् ॥ | रसमें घोटें और फिर टिकिया बना कर, उन्हें रजस्तद्वस्वगलितं नीरे तरति हंसवत् । सुखा कर यथा विधि शराव-सम्पुटमें बन्द करें सोमामृताभिधमिदं लोहभस्म प्रकीर्तितम् ॥ ' और गजपुटकी अग्नि दें।
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