Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसपकरणम्
चतुर्थों भागः विधारेको जड़का चर्ण घीके साथ १ सप्ताह | सेवन करनेसे १०० वर्षकी रोग रहित आयु तक सेवन करने और मूंगका यूष तथा भात खानेसे प्राप्त होती है। स्वर किन्नर सदृश मधुर हो जाता है।
पीपल, हरे, बहेड़ा, आमला, दारुहल्दी, विधारा मूलके चर्णको आमलेके रसकी (बहुत सेठ और पुनर्नवामूल; इनका चर्ण ५०-५० सी) भावना दे कर रक्खें । इसे शहद और घीके तोले तथा विधारामूलका चूर्ण सबके बराबर ले कर या दूधके साथ १ मास तक सेवन करनेसे १०० सबको एकत्र मिला कर रखें। वर्षकी रोगरहित आयु प्राप्त होती है । ___ इसे कांजीके साथ सेवन करनेसे दुष्ट वायु,
गुल्म, उदर रोग और गरविषादिका नाश होता है। दूधमें विधारा मूलका स्वरस मिला कर औषध पच जाने पर यथेच्छ आहार करना सेवन करने या विधारा मूलके कल्कसे सिद्ध घृत चाहिये।
इति वकारादिकल्पप्रकरणम्
अथ वकारादिरसप्रकरणम् (६८९२) वङ्गभस्मयोगः (१) बंग भस्म और गोखरुका चूर्ण समान भाग (यो. र.। प्रमेहा.)
ले कर दोनोंको एकत्र मिला कर ३-३ रत्तीकी शाल्मलित्वासोपेतं सक्षौद्रं रजनीरजः। | मात्रानुसार मिश्रीयुक्त गोदुग्धके साथ सेवन करनेसे
। वनभस्म हरेन्मेहान्पश्चानन इव द्विपान् ॥ समस्त प्रकारके प्रमेह नष्ट होते हैं । बंग भस्म और हल्दीका चूर्ण समान भाग
(६८९४) बङ्गभस्मयोगः (३) ले कर दोनोंको एकत्र मिला कर (४ रत्तीकी
(यो. र. ; वृ. नि. र. । प्रमेहा.) मात्रानुसारे ) शहद और सेंभलकी छालके रसमें मिला कर सेवन करनेसे समस्त प्रकारके प्रमेह | गुडूचीरसमधुना वनभस्म प्रमेहनुत् । नष्ट होते हैं।
नागभस्म तथैवापि सर्वमेहनिवारणम् ॥ (६८९३) बङ्गभस्मयोगः (२) बंग भस्म अथवा नागभस्मको गिलोयके रस (यो. र. । प्रमेहा.)
और शहदके साथ सेवन करनेसे समस्त प्रकारके पयो गवां सखण्डकं त्रिकण्टवङ्गवल्लकम् । प्रमेह नष्ट होते हैं। प्रमेहभल्लकं परं बुधा वदन्ति सादरम् ॥ (मात्रा-२ रत्ती)
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