Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy

View full book text
Previous | Next

Page 900
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्रीरोग] चतुर्थों भाग: ८९७ - घृतम या अल्पायु सन्तान ) ६३१७ लोमनाशनयोगः योनिके लोम नष्ट उत्पन्न होना आदि करता है ५२५४ मातुलुङ्गमूल- वन्ध्यत्व ६३१८ , ६३१९ , ५२६३ मुद्गादिघृतम् रक्तप्रदर ६८६० विशालादिलेपः स्तन पीड़ा ५७८८ यवादि घृतम् सूतिका रोग ।। ६८६४ घृषमूलादियोगः सुख प्रसवकारक ६७५९ वृद्धदारुकघृतम पुत्रदाता, वृष्य । ६७६० वृहत्कल्याणघृतम् नं. ५२३० के समान नस्य-प्रकरणम् तैल-प्रकरणम् ५४६४ मुण्डीतैलनस्य स्तनोंको दृढ करती है ५३१८ मुण्डी तैलम् स्तनोंको कठोर करता है, ६३२७ लक्ष्मणामूल- पुत्रदाता ५३२२ मृणालादितैलम् योनिकी शिथिलता, नस्यम् ___पिच्छिलता, दुर्गन्ध ६२९४ लोमनाशकतैलम् बालोको निकलनेसे रस-प्रकरणम् रोकता है। ५५०२ मधुकाधवलेहः वेदना युक्त अनेक ६७७२ वचादि तैलम् स्तनवर्द्धक प्रकारका भयंकर प्रदर, योनिशूल, दाह, रक्त आसवारिष्ट-प्रकरणम् स्राव ६२९६ लक्ष्मणारिष्टः वन्ध्यत्वादि ५५५७ महाभ्रवटी ५५५८ , सूतिका रोग, कृशता, लेप-प्रकरणम् स्थूलता आदि ५५७९ महाशार्दूलरसः गर्भिणीके ज्वर, दाह, ५३५१ मधुकादि लेपः रक्त प्रदर छदि आदि अनेक रोग ५३७४ माकन्दफलादि अत्यन्त यानिसंकोचक लेपः ६०३५ रक्तोदर कुठार जलोदर, [ तीब्र रेचक ] ५३८० मातुलुङ्गादिलेपः मक्कलशूलकी शिरपीडा ६०४३ रत्नप्रभावटिका समस्त स्त्री रोग ५३८४ मायाफलादिलेपः योनिको दृढ और बलि ६०४४ रत्नभागोत्तररसः वन्ध्यत्व के लिये अत्युरहित करता है त्तम, गर्भिणी रोग ६३०९ लाङ्गल्यादिलेपः सुखप्रसवकारक नाशक, कामवक ૧૧૩ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908