Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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इस पर किसी विशेष प्रकारके
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अदरक और आम समें पृथक् पृथक् खरल करके सुखा कर सुरक्षित रखखें ।
मात्रा - २॥ माशा ।
( व्यवहारिक मात्रा -६ रत्ती )
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इसे प्रातःकाल सेवन करना चाहिये । इसके सेवनसे अग्निमांथ, अजीर्ण, अर्श ग्रहणी, आमाजीर्ण और उदर रोगोंका नाश होता है ।
आवश्यकता नहीं है ।
देखिये ।
बृहन्मण्डूरवटकः
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भारत-भैषज्य रत्नाकरः
प्र. सं. २७८७ “त्र्यूषणादिमण्डूरवटिका
देखिये |
वृहन्महोदधिरसः
प्र. सं. ५५९२ महोदधि रस: ( वृहत् ) (४) देखिये |
वृहद्वङ्गेश्वरो रसः बङ्गेश्वर रस (बृहद् ) देखिये ।
( ७११८) वेतालरसः
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( भै. र. र. चं. २, रसे. सा. सं. । ज्वरा. ) शुद्धं सूतं विषं गन्धं मरिनालं समाक्षिकम् । मर्दयेच्छिलया तावद्यावज्जा येत कज्जली ॥ आर्द्रकस्य रसेनाथ कारयेद्वटिका शुभाः । गुञ्जामात्रं प्रदातव्यं द्वादशे सन्निपातके || साध्यासाध्यं निहन्त्याशु सन्निपातं त्रिदोषजम् । ईशेन कथितः शुद्धो वेतालाख्यो महारसः ॥ परहेज़की | कण्ठे ह्यपि गतैः प्राणैर्यमदूतान्निवारयेत् ॥
शुद्ध पारद, शुद्ध वछनाग, शुद्ध गंधक, काली मिर्च का चूर्ण, शुद्ध हरताल और स्वर्ण माक्षिक भस्म समान भाग ले कर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनायें और फिर उसमें अन्य ओषधियां मिला कर सबको अच्छी तरह खरल करें । तदनन्तर अदरक के रस में घोट कर १-१ रत्तीकी गोलियां बना लें |
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बृहन्मालिनीवसन्तरस:
प्र. सं. ६९७३ वसन्त मालिनी रस: (२)
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[ वकारादि
इनके सेवन से हर प्रकारका सन्निपात ज्वर नष्ट होता है । यह रस सन्निपातके मृतप्रायः रोगीको भी जिला देता है ।
(७११९) वेदविद्यावदी (१) (भै. र. । प्रमेहा. )
वृहल्लोकनाथरस:
पारदाभ्रककान्तानां नागभस्म समं समम् । दिनं ब्रह्मीरसैर्मर्द्य बालुकायन्त्रगं पुनः ॥
प्र. सं. ६३७४ लोकनाथ रस: (३) उद्धृत्य चूर्णयेच्छ्लक्ष्णं जारिताभ्रं शिलाजतु । ताप्यं मण्डूरवैक्रान्तं काशीशं तुल्यमेव च ।!
देखिये ।
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१. भै. र. में हरताल और माक्षिक नहीं है ।
२. र. चं. में मरिच और माक्षिकका अभाव है।