Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy

View full book text
Previous | Next

Page 829
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८२६ भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [अनिमांध - विसूचिका आदिको नष्ट करती है। रसप्रकरणम् - घृतप्रकरणम् ५२२३ मस्तुषटपलघृतम् अग्निमांद्य, कफ, गुल्म ६७४८ विदारीवृतम् भस्मक. तैलप्रकरणम् ५३१७ मिश्याचं तैलम् खल्लीशूल आसवारिष्ट-प्रकरणम् ५३३८ मुस्तकारिष्टः भयंकर विसूचिका, अजीर्ण, अग्निमांध. ५५९१ महोदधि रसः अग्निमांध ५५९२ ,, अग्निमांद्य, अफारा, शूल ६०४५ रविसुन्दरवटी अजीर्ण, ज्वर ( अग्नि वईक) ६१३६ राजवल्लभरसः अजीर्ण, अग्निमांप। ६१३९ राजशेखरवटी अग्निमांध, वायु, शूल ६१४९ रामबाण रसः अजीर्ण ६१५८ रोगेभसिंह श्री- अजीर्ण, शीत खण्डवट्यौ ६३४० लघुक्रव्याद रसः अजीर्ण ६३५४ लवङ्गाधमोदकम् अग्निमांद्य, अजीर्ण, ६९४३ वडवाग्नि रसः अत्यन्त अग्निवर्द्धक ६९४५ वडवानलगुटिका क्षुधा वैषम्य, अग्निमांध ६९५० वडवानल रसः विचिका, अग्निमांच ६९५२ , , अग्निमांद्य ६९५३ , ,, , ६९५७ , वटी अग्निमांद्य, अरुचि, विसूचिका ६९५८ वडवामुखी गुटी अग्निवैषम्य ( शीघ्र अग्नि दीपक) ६९७७ वह्नि रस: अग्निमांध, शूल ६९७८ वहिसूतो रसः अग्नि दीपक ७०१० वारिभक्त बटिका आमाजीर्ण ७०२१ विजय रसः अजीर्ण ७०४२ विद्याधरमण्डूरम अग्निमांद्य, प्रहणी विकार. ७०५२ विध्वंस रसः विषूचिका लेप-प्रकरणम् ५८०६ यवपिष्ट लेपः दुस्तर उदरशूल अञ्जन-प्रकरणम् ६८८० विचिकानाशन विधुचिका गुटिका ६८८३ व्योषायननम् ॥ नस्य-प्रकरणम् ६८९० व्योषादिनस्यम् विषूचिका For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906 907 908