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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[अनिमांध
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विसूचिका आदिको नष्ट करती है।
रसप्रकरणम्
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घृतप्रकरणम्
५२२३ मस्तुषटपलघृतम् अग्निमांद्य, कफ, गुल्म ६७४८ विदारीवृतम् भस्मक.
तैलप्रकरणम्
५३१७ मिश्याचं तैलम् खल्लीशूल
आसवारिष्ट-प्रकरणम्
५३३८ मुस्तकारिष्टः
भयंकर विसूचिका, अजीर्ण, अग्निमांध.
५५९१ महोदधि रसः अग्निमांध ५५९२ ,, अग्निमांद्य, अफारा, शूल ६०४५ रविसुन्दरवटी अजीर्ण, ज्वर ( अग्नि
वईक) ६१३६ राजवल्लभरसः अजीर्ण, अग्निमांप। ६१३९ राजशेखरवटी अग्निमांध, वायु, शूल ६१४९ रामबाण रसः अजीर्ण ६१५८ रोगेभसिंह श्री- अजीर्ण, शीत
खण्डवट्यौ ६३४० लघुक्रव्याद रसः अजीर्ण ६३५४ लवङ्गाधमोदकम् अग्निमांद्य, अजीर्ण, ६९४३ वडवाग्नि रसः अत्यन्त अग्निवर्द्धक ६९४५ वडवानलगुटिका क्षुधा वैषम्य, अग्निमांध ६९५० वडवानल रसः विचिका, अग्निमांच ६९५२ , , अग्निमांद्य ६९५३ , ,, , ६९५७ , वटी अग्निमांद्य, अरुचि,
विसूचिका ६९५८ वडवामुखी गुटी अग्निवैषम्य ( शीघ्र
अग्नि दीपक) ६९७७ वह्नि रस: अग्निमांध, शूल ६९७८ वहिसूतो रसः अग्नि दीपक ७०१० वारिभक्त बटिका आमाजीर्ण ७०२१ विजय रसः अजीर्ण ७०४२ विद्याधरमण्डूरम अग्निमांद्य, प्रहणी
विकार. ७०५२ विध्वंस रसः विषूचिका
लेप-प्रकरणम्
५८०६ यवपिष्ट लेपः
दुस्तर उदरशूल
अञ्जन-प्रकरणम्
६८८० विचिकानाशन विधुचिका
गुटिका
६८८३ व्योषायननम्
॥
नस्य-प्रकरणम्
६८९० व्योषादिनस्यम् विषूचिका
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