Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy

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Page 871
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८६८ ५३३३ मध्वासवः ५९६९ रोघ्रासवः ६२९८ लवङ्गासवः प्रह ५५८७ महासेतु रसः ५५९४ माक्षिकादिचूर्णम् शुक्रमेह ५६२९ मृगमाला रसः प्रमेह ५६५५ मृत्युञ्जय" ५६६६ मेघनाद ५६७३ मेहकेसरी,, लेप-प्रकरणम् ५८१४ यष्टचादि लेपः पित्तरक्तज प्रमेहकी दाह " रस-प्रकरणम् ५५२७ मस्कमृगाङ्कोरस: मधुमेह रसः ५५३० महाकल्कनामक प्रमेह, श्वास, कास, (बल वीर्यवर्द्धक) ५५३८ मद्दा कुष्माण्ड- प्रमेह, शुक्रदोष, अनिमांद्य, मलावरोध शिरपीड़ा ( वाजीकरण) पाक: ५६७४ मेहद्विरदसिंहो ५६७५ मेहनाशन ५६७६ मेह भैरवो www. kobatirth.org " -भैषज्य - रत्नाकरः 15 [ प्रमेह कफ पित्तज प्रमेह, ५६७७ मेहमुद्गरो रसः साध्यासाध्य समस्त प्रअरुचि कफज तथा पित्तज प्रमेह दुर्जय प्रमेह, धातुक्षीणता भारत प्रमेह, बहुमूत्र, नपुंस्कता (अत्यन्त कामो त्तेजक) प्रमेह पुरानामेह, मधुमेह, (शुक प्रवाहको ३ दिनमें (ष्ट करता है | ) प्रमेह समरत प्रमेह समस्त प्रमेह, शुक्रक्षय, शोथ ५६७८ मेहाङ्कुश रसः ५६७९ मेहानलो ५६८० मेहारि ५६८१ " ५८३९ योगीश्वरो ५८४१ योगेश्वररसः "" 29 "" " ६०६० रसचण्डांशु ६१२७ रसेन्द्रनाग रसः ६१३० राजमृगाङ्क," For Private And Personal Use Only ६१४७ रामबाण रसः Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६१५३ रुजादन वटी ६१६७ रौप्य रस वटी मूत्रकृच्छ्र ६०३३ रक्तसुतशेखररसः प्रमेह, अग्निमांद्य, अ रुचि, शिरोग्रह आदि समस्त प्रमेह प्रमेह, प्रमेह पिडिका, वातव्याधि ६३७० लोकनाथपोटली ६३७९ लोकनाथ रसः मेह, मूत्रकृच्छ्र प्रमेह, अतिसार पुराना प्रमेह समस्त " 39 "" त्तज रोग पाण्डु, पि ६१४४ राजावर्तावलेहः प्रमेह, हृद्रोग, अर्श, वृषण पीड़ा, वीर्यविकार समस्त प्रमेोंको अवश्य नष्ट करता है । प्रमेह, कफ, गुदवायु पूतिमेह ( सूज़ाक ) में उतम है। असाध्य प्रमेहको भी नष्ट कर देता है । प्रमेह, बहुमूत्र, अश्मरी मेहनाशक, दीपन, वृष्य, रोचक प्रमेह (वीर्यवर्द्धक) प्रमेह, मूत्रकृच्छ्र, कास

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