Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy

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Page 890
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वातव्याधि] चतुर्थों भागः - मिश्र प्रकरणम् ६१८० रसोन वटकः हनुस्तम्भ ५७०० महाशाल्वणयोगः वातज पीड़ा नाशक ६८४९ वल्मीकमृत्तिकाद्य- घोर उरुस्तम्भको भी प्रसिद्ध स्वेद अवश्य नष्ट करता है। ५८५० यवान्यादि पेया कमर, हृदय, पार्व और काष्ठकी पीड़ा ! ६८५२ वातनाशक लेपः वातज पीड़ा दूर्तनम् (४७) विद्रधि. कषाय-प्रकरणम् लेप-प्रकरणम् ६४९३ वरुणादिकषायः प्रवृद्ध अपक्व अन्तर्वि- | ५८०९ यवादि लेपः अपक विद्रधि दधि रस-प्रकरणम् ६५०१ वर्षाभ्वादिक्काथः अन्तर्विद्रधि ६०५६ रसगन्धकयोगः अन्तर्विद्रधि, बाह्यविद्रधि मिश्र-प्रकरणम् घृत-प्रकरणम् | ५१३० मानक मूलादि कष्ट साध्य अन्तर्विद्रधि ६७३४ वरुणादि घृतम् दुस्साध्य अन्तर्विद्रधि योगः (४८) विरेचनाधिकारः चूर्ण-प्रकरणम् ६६५८ व्योषादि चूर्णम् विरेचक गुटिका-प्रकरणम् ५९३० रेचनी वटी आमनाशक ६१३५ राजवल्लभ गुटिका नाभि पर लेप करने तथा सूंधनेसे विरेचन होता है।) घृत-प्रकरणम् ५२४६ महावज्रकवृतम् तीब्र रेचक ६७५० विन्दु घृतम् ६७५१ ॥ " तीन रेचक (नाभिपर लेप करनेसे भी रेचन होता है। ६७५२ ,, , तोब रेचक ६७५३ " ". For Private And Personal Use Only

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