Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत - भैषज्य रत्नाकरः
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अजमोद समान भाग ले कर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बाचें और फिर उसमें अन्य औषधियोंका चूर्ण मिला कर उसे नीमके काथकी २१ और भंगरेके रसकी सात भावना दे कर सुखा लें और फिर शहद में घोट कर ( ४-४ रत्ती की ) गोलियां बना लें ।
इन्हें रात्रि के समय सेवन करनेसे जलोदर नष्ट होता है ।
(७१३६) वैश्वानररसः (२) ( र. र. स. । उ. अ. १८ ) विष्णुक्रान्ता च जेपालं लाङ्गली सुरदालिका । यवचिञ्चाम्बुसारेण तासां द्विगुणगन्धकम् ॥ पक्ष विमर्दितं सूतं स्वेदयेन्मृदुनाग्निना । गुल्मे गुञ्जात्रयं चास्य सोष्णाम्बुघृतसैन्धवम् ॥ वातजे कफजे लिह्यान्मध्वार्द्रकसमन्वितम् । efeatमाक्षिकं पैत्ते सोऽयं वैश्वानरो रसः ||
कोयल, शुद्ध जमालगोटा, कलियारीकी जड़, और बिन्दाल (देवदाली) १ - १ भाग तथा शुद्ध पारद और गन्धक ८-८ भाग ले कर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनायें और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिला कर सबको १५ - १५ दिन खिरनीके रस और सुगन्ध बाला के रसमें घोट कर गोला बनावें एवं उसे शरात्रसम्पुटमें बन्द करके मन्दाग्निमें स्वेदित करें और फिर खरल करके सुरक्षित रखें।
मात्रा - ३ रत्ती ।
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मिला कर उसमें औषध मिला कर खाना और बाद में उष्ण जल पीना चाहिये ।
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तथा कफज गुल्म में शहद और अदरक के रसके साथ एवं पित्तज गुल्म में मिश्री और शहद - के साथ सेवन करना चाहिये ।
(७१३७) व वानररसः (३) ( र. का. . । अजीर्णा . ) शोधितं पारदं गन्धं यवक्षारं च जीरकम् । स्वक्षारं विषं कृष्णां विडङ्गं मरिचं बचा || नागरं पञ्चलवणं समभागं समाहरेत् । विषमुष्टि सर्वतुल्यं जम्बीराम्लेन मर्दयेत् ॥ मरिचस्य प्रमाणेन कर्तव्या वटिका शुभा । तामेकां वटिकां खादेत्प्रातः पथ्याजरणगुडैः ॥ अयं वैश्वानरो नाम रसो मन्दाग्निनाशनः ॥
शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, जवाखार, जीरा, सञ्जी, शुद्ध बछनाग, पीपल, बायबिडंग, काली मिर्च, बच, सोंठ, सेंधा नमक, संचल ( काला नमक ), विड लवण, काच लवण और सामुद्र लवण १ - १ भाग तथा शुद्ध कुचला सबके बराबर ले कर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य ओषधियांका चूर्ण मिला कर जम्बरी नीबू के रस में खरल करके काली मिर्च के बराबर गोलियां बना लें 1
इनमें से १-१ गोली प्रातःकाल हर्र और ith चूर्ण तथा गुड़ में मिला कर सेवन करने से
अनुपान -- वातज गुल्म में वृतमें सेंधानमक अग्निमांधका नाश होता है ।
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