Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[धकारादि
सर्व रेव समांशनिस्तुषकृतं दन्तीफलं चूर्णयेत् इनके सेवनसे विरेचन अवश्य हो जाता है गुजैकः सितया समं रसवरः संभक्षितो रेचकृत्।। और कृमि रोग तथा ज्वरका नाश होता है ।
शुद्ध पारद २॥ तोले, सुहागेकी खील २॥ अनुपान-शीतल जल । तोले, शुद्ध गन्धक ५ तोले तथा पीपल, सेठ,
(७०६०) विलासिनीवल्लभरसः पीपलामूल और त्रिकुटा; इनका चूर्ण १०-१० | तोले एवं शुद्ध जमालगोटा सबके बराबर ले कर |
। ( वै. जी. । विला. ५ ; र. रा. सु. । रसायना. ; प्रथम पारे गन्धकको कञ्जली बनावें और फिर
र. चि. म. । स्त. ११) उसमें अन्य ओषधियां मिला कर सबको पानीके
समानभागे बलिशूलिवीजे साथ धोट कर १-१ रत्तीकी गोलियां बना लें।
__तयोः समानं कनकस्य वीनम् । इनमेंसे १ गोली मिश्रीके साथ खानेसे विरे
धत्तूरतैलेन विमर्य सम्यग् चन हो जाता है।
विलासिनीवल्लभनामधेयः ।।
मूतो भवेदल्लयुगप्रमाणः ( अनुपान-शीतल जल । )
सितायुतो मेहसमूहहारी। (७०५९) विरेचनी गुटिका
वीर्यस्य बन्धं कुरुते नराणां ( र. प्र. सु. । अ. ८)
निहन्ति दर्प च सुलोचनानाम् ।। पारदं गन्धकं विश्वा टङ्गणं विषमुष्टिकम् ।।
शुद्र गन्धक और पारद १-१ भाग तथा स्वर्जिका मरिचं कृष्णा समभागानि कारयेत् ॥ शुद्ध धत्तरबीज २ भाग ले कर प्रथम पारे गंधककी विडङ्गं चाभया दन्ती त्रिवन्नेपालकं तथा ।
कजली बनावें और फिर उसमें धतूरके बीजोंका पूर्वचूर्णसमान्येव भृङ्गद्रावेण भावयेत् ॥
चूर्ण मिला कर धतूरेके तेलमें अच्छी तरह खरल गुआप्रमाणवटिका भक्षिता शीतवारिणा।
करके ६-६ रतीकी गोलियां बना लें। विरेचयत्यवश्यं हि कृमिरोगान् ज्वरानपि ॥
__इन्हें खांडके साथ सेवन करनेसे समस्त प्रमेह विनाशयति वै सम्यक सत्यं गुरुवचो यथा ॥
| नष्ट होते और वीर्यस्तम्भन होता है। इसके प्रावशुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, सेांठ, सुहागेकी
| से मनुष्य मानगर्विता कामिनियोंका मानमर्दन खील, शुद्ध कुचला, सजीखार, काली मिर्च और |
कर सकता है। पीपल १।-१। तोला तथा बायबिडंग, हर', दन्तीमूल, निसोत और शुद्ध जमाल गोटा २-२ तोले
(७०६१) विश्वतापहरणरसः ले कर प्रथम पारे गंधककी कज्जली बनावें और (वै. जी. । विला. ५; र. रा. सु. ; वृ. फिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिला कर
नि. र. । ज्वरा.) भंगरेके रसमें घोट कर १-१ रत्तीकी गोलियां | पथ्याकणार्कविषतिन्दुकदन्तिबीजबना लें।
| तितात्रिद्रसबलीन्सहशान्विमध ।
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