Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy

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Page 795
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [वकारादि वृद्ध विद्याधराभ्रकम् एक तां वटिकां यस्तु निर्गिलेद् वारिणा सह (र. रा. सु.) अन्त्रवृद्धिरसाध्याऽपि तस्य नश्यति सत्वरम् ॥ प्र. सं. ७०४७ देखिये शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, लोह भस्म, वंग (७१००) वृद्धिनाशनरसः भस्म, ताम्र भस्म, कांसी भस्म, शुद्ध हरताल, ( र. चं. । अन्त्रवृद्धि.) शुद्ध तूतिया, शंख भस्म, कौड़ी भस्म, सेांठ, मिर्च, पीपल, हर, बहेड़ा, आमला, चव्य, बायबिडंग, रसगन्धौ समौ ताभ्यां द्विगुणं हेममाक्षिकम । विधारा मूल, कचूर, पीपलामूल. पाठा, हपुषा, पथ्यारसेन त्रिदिनं रुबुतैलेन वासरम् ॥ बच, इलायचीके बीज, देवदारु, सेंधानमक, काला मर्दितं सिद्धिमायाति रसेन्द्रो वृद्धिनाशनः ।। नमक (संचल), विड लवण, सामुद्र लपण और ___ शुद्ध पारद और गन्धक १-१ भाग और | काच लवण समान भाग ले कर प्रथम पारे गन्धकस्वर्ण माक्षिक भस्म ४ भाग, ले कर सबको एकत्र की कजली बना और फिर में अन्य ओषखरल करके कज्जली बनावें और फिर उसे ३ दिन धियोंका वर्ण मिला काके का घोट कर हरेके क्वाथमें तथा १ दिन अण्डीके तेलमें खरल | - माशेकी गोलियां बना लें। करके सुरक्षित रक्खें । ( व्यवहारिक मात्रा--३-४ रत्ती ।) ( मात्रा-२ रती) इन्हें पानीके साथ सेवन करनेसे असाध्य इसके सेवनसे वृद्धि रोग ( अन्त्र वृद्धि ) का अन्त्रवृद्धि भी शीबही नष्ट हो जाती है । नाश होता है। (७१०२) वृहच्चन्द्रामृतरम: ___ (७१०१) वृद्धिवाधिकावटिका ( रसे. सा. सं. ; र. रा. सु. : धन्व. : भै. ( भै. र. । वृद्ध य. : वै. र. । अण्डवृदि. : _ भा. प्र.) र। गजय.) शुद्धस्तं तथा गन्धं मृतान्येतानि योजयेत् । रसगन्धकयोद्यं कर्षमेकं सुशोधितम् । लौहं वङ्गं तथा तानं कांस्यश्चाथ विशोधितम् ॥ अभ्रं निश्चन्द्रकं दद्यात्पलार्द्धश्च विचक्षणः ॥ तालकं तुत्थकञ्चापि तथा शङ्खवराटकम् ।। कपूरं शाणकं दद्यात्स्वर्ण तोलकसम्मितम् । त्रिकटु त्रिफला चव्यं विडङ्गं दृद्धदारकम् ॥ ताम्रश्च तोलकं दद्याद्विशुद्धं मारितं भिषक ॥ कचूरं मागधीमूलं पाठां सहवुषां वचाम् । लौहं कप क्षिपेत्तत्र वृद्धदारकजीरकम् । एलावीज देवकाष्ठं तथा लवणपञ्चकम् ॥ विदारी शतमूली च क्षुरकञ्च बला तथा । एतानि समभागानि चूर्णयेदथ कारयेत् ।। मर्कटयतिबला चैव जातीकोषफले तथा । कपायेण हरीतक्या वटिकां टङ्कसम्मिताम् ॥ लवङ्ग विजयाबीजं श्वेतस्वर्जरसन्तथा ॥ For Private And Personal Use Only

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