Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रसपकरणम् ]
चतुर्थों भागः विडङ्गं त्रिफलाव्योषमब्धिफेनं पुनर्नवा । (६९९१) वातरक्तान्तको रसः (२) देवदारुचित्रकञ्च दार्वी श्वेतापराजिता ॥
( र. र.। वातरक्ता.) चूर्णमेषां पृथक् तुल्यं सर्वमेकत्र भावयेत् । त्रिफलाभृङ्गराजस्य रसेनैव त्रिधा त्रिधा ।।
लोहं फलत्रिकं चैव शाणमानं समाहरेत् । सम्भाव्य भक्षयेत्पश्चान्माषमा दिने दिने । षट्शाणं बाकुचीबीजं यत्नतः परिकल्पयेत् ॥ कृत्वानुपानं निम्बस्य पत्रं पुष्पं त्वचं समम् ॥ | त्रिचित्रकमूलञ्च शाणं शाणं समाहरेत् । माषमानं घृतैः कुर्यात् सर्ववातविकारनुत । शुण्ठीशाणत्रयं दद्याच्छाणैकं पिप्पली तथा ॥ वातरक्तं महाघोरं गम्भीरं सर्वजं जयेत् ॥ तोलद्वयं गुडूच्याश्च तथा पौनर्नवं दलम् । सर्वोपद्रवसंयुक्तं साध्यासाध्यं निहन्त्ययम् ॥ तथा वासकवल्कञ्च मुस्तं शाणद्वयं तथा ॥ __शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, लोह गस्म, अभ्रक शाणद्वयं घोषावती फलं दद्याद्भिषग्वरः । भस्म, शुद्ध हरताल, शुद्ध मनसिल, शुद्ध शिलाजीत, पिष्टवैकत्र जलं दत्त्वा शुष्कं भक्षयेत्ययत्नतः ॥ शुद्ध गूगल, बायबिडंग, हर्र, बहेड़ा, ओमला, मासमेकं प्रयोगेण प्रातः काले दिने दिने । सोंठ, मिर्च, पीपल, समुद्रफेन' पुनर्नवाकी जड़, मधुना लेहपिष्टश्च वातरक्तं विनाशयेत् ॥ देवदारु, चीता, दारुहल्दी और सफेद कोयल; गम्भीरं द्वन्द्वजं चैव त्रिदोषजमथापि वा। इनका चूर्ण समान भाग ले कर सबको एकत्र नाशयेन्नात्र सन्देहः सर्वकुष्ठं तथैव च ।। मिला कर त्रिफले और भंगरेके रसकी ३-३ |
वातरक्तान्तको नाममयोगो मुनिसम्मतः ॥ भावना दें।
लोह भस्म, हर्र, बहेड़ा और आमला ३॥मात्रा-१ माशा।
३॥ माशे; बाबचीके बीज २२॥ माशे; निसोत अनुपान-नीमके पत्ते, नीमके फूल और और चीतामूल ३॥-३॥ माशे; सांठ ११॥ नीमकी छाल समान भाग ले कर चर्ण बनावें। माशे, पीपल ३॥। माशे; गिलोय, पुनर्नवाके पत्ते इसमेंसे १। माशा चूर्ण घीमें मिला कर उपरोक्त रस
और बासे (अडूसे) की छाल १५-१५ माशे; खानेके पश्चात् चाटना चाहिये ।
नागरमोथा ७॥ माशे और घोषावती (कड़वी
तूंबी ) का फल ७॥ माशे ले कर सबको एकत्र इसके सेवनसे अत्यन्त घोर, गम्भीर और
मिला कर पानीके साथ अच्छी तरह खरल करें सर्व दोषज असाध्य वातरक्तका भी नाश हो
और जब सूख जाय तो बारीक चूर्ण करके सुरजाता है।
क्षित रक्खें। १ कई ग्रन्थोंमें समुद्रफेनके स्थान पर बाबची इसे प्रातःकाल शहदके साथ सेवन करना लिखी है।
| चाहिये।
For Private And Personal Use Only