Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[लकारादि
संसारमें इससे उत्तम. अन्य कोई योग | कर लुगदी बनावें और फिर लोधको बारीक पीस नहीं है।
कर उसकी गोली बना कर उसे उक्त लुगदीके
बीचमें रख कर एक बड़ीसी गोली बना लें और (६४५४) लोचनशूलनीपोटली
उसे घीमें भून लें । तदनन्तर बहुत मुलायम रुइको ( यो. र. । नेत्र रोगो.)
कांजीमें भिगो कर उसमें उक्त गुटिका लपेट कर कृतलाजसुराष्टजाहिफेनं
नेत्रोंके ऊपर चारों ओर फिरानेसे नेत्र कोप ( नेत्र रुचिरं नागजगालवोत्थचूर्णम् । दुखना रोग ) नष्ट होता है। सुकुमायुदकेन शुल्वपात्रे
(६४५६) लोधादियोगः (१) मृदितं दृष्टिरुजं जयेत्पटस्थम् ॥
(व. से. । नेत्ररोगा.) फटकीकी खील, अफीम, केसर, सीसेकी
श्वेतलोधं घृते भृष्टं चूर्णितं ताप्य तुत्थकम् । भस्म और पठानी लोध समान भाग ले कर चूर्ण
उष्णाम्बुना विमृदि सेकः शूलहरः परः॥ बनावें।
___घीमें भुना हुवा सफेद लोध, स्वर्णमाक्षिक इसे तांबेके खरलमें घोकुमारके रसमें घोट
और नीला थोथा समान भाग ले कर सबको उष्ण कर कपड़े बांध कर पोटली बनावें।
जलमें घिस कर आंखमें डालनेसे नेत्र शूल नष्ट __इसे आंखों पर फिरानेसे नेत्रपीड़ा नष्ट | होता है। होती है।
__ (६४५७) लोधादियोगः (२) (६४५५) लोधादिगुटिका
( यो. र. । नेत्ररोगा.) (वृ. मा. । नेत्ररोगा.)
शाबरं मधुकं तुल्यं घृतभृष्टं सुचूर्णितम् । पिष्टैनिम्बस्य पत्रैरतिविमल- छागक्षीरोत्थितं सेकः पित्तरक्ताभिघात जित् ॥ तरैर्जातिसिन्धूत्थमित्रै
साबर लोध और मुलैठी समान भाग ले कर रन्तर्गर्भ दधाना पटुतर
चूर्ण बनावें और उसे घीमें भून कर बकरीके दूधमें गुटिका पिष्टलोभ्रेण भृष्टा । पीस लें एवं उसे कपड़ेमें निचोड़ कर रस तूलैः सौवीरसान्द्र्रतिशय
| निकालें । इसे आंख में डालनेसे पित्तरक्तज नेत्राभिमृदुभिर्वेष्टिता सा समन्ता
घात नष्ट होता है। चक्षुष्कोपोपशान्ति चिर
(६४५८) लोध्रादिसेकः (१) मुपरि दृशा भ्राम्यमाणा करोति ॥
(व. से. । नेत्र रोगा.) नीमके स्वच्छ पत्ते, चमेलीके फूल और लोध्रचूर्ण घृते भृष्टं रुजमाश्च्योतनं हरेत् । सेंधा नमक समान भाग ले कर सबको एकत्र पीस | शर्करात्रिफलाचूर्णमिदमाश्च्योतनं परम् ॥
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