Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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घेतप्रकरणम् ]
चतुर्यों भागः
देखिये।
वज्रकघृतम् (२)
(६७३१) वत्सकादिघृतम् (१) (वा. भ. । चि. अ. १८)
(३. नि. र. । अतिसारां.) प्र सं. ५२४६ महावज्रकवृतम् (१) | वत्सकस्य च बीजानि दााश्चैव त्वगुत्तमा । देखिये ।
पिप्पली शृङ्गवेरं च लाक्षा कटुकरोहिणी ।। वज्रकघृतम् (३)
षभिरेतैघृतं सिद्ध पेयं मण्ड विमिश्रितम् ।। प्र. सं. ५२४७ महावज्रकवृतम् (२)
____ कल्क-इन्द्रजौ, दारु हल्दीकी छाल, पीपल,
अदरक, लाख और कुटकी ५-५ तोले ले कर (६७३०) वज्रकघृतम् (४)
सबको एकत्र पीस लें। ( वा. भ. । चि. अ. १९)
क्वाथ-उपरोक्त कल्क वाली ओषधियां वासामृतानिम्बवरापटोल
१-१ सेर ले कर सबको एकत्र कूट कर ४८ व्याघ्रीकरओदककल्कपक्वम् ।
सेर पानीमें पकावें और १२ सेर पानी शेष रहने सर्पिविसर्पज्वरकामलामृक्
पर छान लें। कुष्ठापहं वज्रकमोमनन्ति ॥
३ सेर धीमें उपरोक्त क्वाथ और कल्क मिला कल्क-वासा (अडूसा), गिलोय, नीमकी |
कर मन्दाग्नि पर पकावें जब पानी जल जाय तो छाल, हर्र, बहेड़ा, आमला, पटोल, कटेली और
घृतको छान लें। करञ्ज ५-५ तोले ले कर सबको पानीके साथ
इसे मण्ड (चावलोंके मांड) में मिला कर पीस लें। ___क्वाथ-उपरोक्त कल्क वाली ओषधियां १-१
पीनेसे अतिसार नष्ट होता है। सेर ले कर सबको एकत्र कूट कर ७२ सेर पानीमें ( मात्रा-१ तोला) पकावें और १८ सेर पानी शेष रहने पर छान लें ।
(६७३२) वत्सकादिघृतम् (२) ४॥ सेर घीमें उपरोक्त कल्क और काथ
(वृ. नि. र. । अतिसारा.) मिला कर मन्दाग्नि पर पकायें जब पानी जल जाय तो घृतको छान लें।
पलं वत्सकसंसिद्धं चतुर्गुणजले घृतम् । इसके सेवनसे विसर्प, ज्वर, कामला, रक्तदोष । पित्तातिसारे भिषजा देयं दीपनपाचनम् ।। और कुष्ठका नाश होता है।
कल्क-५ तोले कुड़ेको छालको पानीके ( मात्रा-१ तोला)
| साथ बारीक पीस लें।
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