Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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चूर्णप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः यमानी जीरको वह्निश्चूर्णमेषाश्च कारयेत् ॥ कफज रोगोंमें गोमूत्रके साथ और सन्निपातज सर्वचूर्णसमं क्षारं सर्वमेकत्र कारयेत् । रोगोंमें कांजीके साथ देना चाहिये । तच्चूर्ण मासयुगलं सलिलेन प्रयोजयेत् ॥ यह चूर्ण अजीर्ण और उससे होने वाले गुल्मे शूले तथाजीणे शोथे सर्वोदरेषु च। समस्त विकारोंको नष्ट करता है। मन्दे वहाबुदावते प्लीनि चापि परं हितम् ॥
(६५८९) वज्रक्षारः (२) वातेऽधिके जलैः कोष्णैर्हितं पित्ताधिके घृतैः।।
(३. यो. त.। त. ९८ ; र. का. धे. । गुल्मा. ; गोमूत्रेण कफाधिक्ये काञ्जिकेन त्रिदोषजे ॥
यो. त. । त. ४६ ) वज्रक्षार इति ख्यातः प्रोक्तः पूर्वं पिनाकिना। सेवितो हरतेऽजीर्ण तथाजीर्णभवान् गदान् ॥ क्षोरं वज्रतरूद्भवं दशपलं तावत्पयोऽप्यनं
प्रत्येकं पलपञ्चकं च लवणं क्षारं च पश्चात्मकम् । समुद्र नमक, सेंधा नमक, काच लवण, जवा- |
विंशत्यर्कदलैयुतं पवितरोभिन्नैश्चतुर्भिः पलैखार, सञ्चल (काला नमक), सुहागा और सजी
मद्भाण्डे गुरुमार्गतो गजपुटे वह्नौ विपक्षीकृतम् ।। खार समान भाग ले कर चूर्ण बनावें और फिर
सञ्चूाथ कटुत्रयं त्रिपलमप्येकं पलं रामलं उसे आक तथा सेहुंड (थोहर) के दूधकी धूपमें
सर्व वस्त्रपुनीतमेतदमले पात्रे सुखं स्थापयेत् । ३-३ भावना दे कर सबका एक गोला बना कर
वज्रक्षार इति प्रणाशयति वै गुल्मानुदग्रान्नृणां सुखा लें । अब इस गोलेको आकके पत्तोंमें लपेट
पीतस्तक्रयुतः प्रभातसमये कर्षप्रमाणं क्रमात् ॥ कर हाण्डीमें बन्द करके पुट दें और उसके स्वांग
| मन्दाग्निं सविषूचिकामरुचितामापाण्डुतां क्षीणतां शीतल होने पर निकाल कर पीस लें।
श्वासं कासमजीर्णशैत्यपवनव्याधीन्बलासोतदनन्तर इस क्षारमें सोंठ, मिर्च, पीपल, हरे,
द्भवान् । बहेड़ा, आमला, अजवायन, जीरा और चीतेका
वज्रक्षार इमानिवार्य भिषजां कीर्ति विधत्ते पर समान भाग मिश्रित चूर्ण इस क्षारके बराबर मिला
मांसं द्रवयति स्फुटं घटिकयोर्द्वन्द्वे किमन्नं पुनः॥ कर खरल करके रक्खें ।
थूहर (सेहुंड) का दूध ५० तोले, आकका मात्रा--२ माशे।
दूध ५० तोले; सेंधा नमक, काला नमक, बिड साधारण अनुपान--पानी ।
नमक, काच नमक और समुद्र लवण तथा जवायह चूर्ण गुल्म, शूल, अजीर्ण, शोथ, हर खार, पलाश क्षार, सज्जी खार, तिल क्षार, और प्रकारके उदर रोग, अग्नि द्य, उदावर्त और मुष्कक ( मोखावृक्ष ) का क्षार २५-२५ तोले, प्लीहाको नष्ट करता है।
आकके पत्ते १०० तोले और थूहरके पत्ते २० विशेष अनुपान--इसे वातकी अधिकतामें | तोले ले कर कूटने योग्य चीजोंको कूट कर सबको उष्ण जलके साथ, पित्तकी प्रधानतामें घृतके साथ, । मृत्पात्र में बन्द करके गजपुटमें पकायें और फिर
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