Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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चूर्णप्रकरणम् ]
- चतुर्थों भागः
५८७
चूर्ण मध्वादिभिः पीतं शूलानाहोदरापहम् । बच, अतीस, नागरमोथा और इन्द्रजौ समान गुल्मार्शः श्वासकासन ग्रहणीपाण्डुरोगहृत् ॥ भाग ले कर चूर्ण बनावें । ___ बच २ भाग, हर्र ३ भाग, बिड नमक ६ यह चूर्ण वातातिसारमें उत्तम काम करता है। भाग, सेांठ ४ भाग, हींग १ भाग, कूठ ८ भाग, ( मात्रा-२ माशे।) चीता सात भाग और अजमोद ५ भाग ले कर
(६५८३) वचादिचूर्णम् (११) चूर्ण बनावें।
(हा. सं. । स्था. ३ अ. ५; यो. इसे शहद आदि उचित अनुपानके साथ
चि. म. । अ. २) सेवन करनेसे शूल, आनाह, उदर रोग, गुल्म, अर्श, श्वास, खांसी, ग्रहणी और पाण्डु नष्ट
वचाजमोदाक्रिमिजित् पलाशहोता है।
बीजं सठी रामठकं त्रिवृच्च । ( मात्रा-२ माशे।)
उष्णोदके तत् परिपिष्य पेयं
पाताय शीघ्रं शतधा कृमीणाम् ।। __ (६५८१) वचादिचूर्णम् (९)
बच, अजमोद, बायबिडंग, पलाशके बीज, ( भै. र. । गुल्मा. ; वृ. मा. ; व. से. ;
कचूर, हींग और निसोत समान भाग ले कर धन्व. ; र. र.)
चूर्ण बनावें। वचा हरीतकी हिङ्गु सैन्धवं साम्लवेतसम् ।
इसे उष्ण जलमें पीस कर पीनेसे कृमि मर यवक्षारं यमानीश्च पिबेदुष्णेन वारिणा ॥
कर निकल जाते हैं। एतद्धि गुल्मनिचयं सशूलं सपरिग्रहम् ।। भिन्नति सप्तरात्रेण व द्धि करोति च ॥ - (६५८४) वचादिचूर्णम् (१२)
बच, हर्र, हींग, सेंधानमक, अम्लबेत, जवा- (व. से. । बालरोगा.) खार और अजवायन समान भाग ले कर चूर्ण उत्सादनं वचाहिङ्गयुक्तं स्कन्दग्रहे हितम् । बनावें।
____ बच और होंग समान भाग ले कर चूर्ण __इसे उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे गुल्म बनावें । और उपद्रव युक्त शूल नष्ट होता तथा अग्नि दीप्त
इसे मर्दन करनेसे स्कन्द ग्रह विकार नष्ट होती है।
होते हैं। ( मात्रा-१॥ माशा) (६५८२) वचादिचूर्णम् (१०)
(६५८५) वचाद्यं चूर्णम् (१) ( यो. र । अतिसारा.)
( ग. नि. । चूर्णा. ३) वचा प्रतिविषा मुस्ता बीजानि कुटजस्य च । वचा वत्सकबीजं च कुष्ठं चित्रकमेव च । श्रेष्ठो वातातिसारे च योगोऽयं वैधपूजितः ॥ पिप्पली शृङ्गवेरं च पाठा कटुकरोहिणी ।।
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