Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत
- भैषज्य रत्नाकरः
(६६५४) व्योषादिचूर्णम् (४)
(बृ. मा. । मुख.; भै. र. । नासा. ; च. द. । नासा ५७; ग. नि. । चूर्णा. ३, नासा. ४; व. से. ; धन्व . )
व्योषचित्रकतालीसतिन्तिडी काम्लवेतसम् । सचव्यजाजितुल्यांश मेलात्वक्पत्रपादिकम् ॥ व्योषादिकमिदं चूर्ण पुराणगुड संयुतम् । पीनश्वासकासनं रुचिस्वरकरं परम् ॥
सोंठ, मिर्च, पीपल, चीता, तालीसपत्र, तिन्तड़ीक, अम्लवेत, चव और जीरा ४-४ भाग तथा इलायची, दालचीनी और तेजपात १-१ भाग लेकर चूर्ण बनावें ।
इसे पुराने गुड़में मिला कर सेवन करने से पीनस, श्वास और खांसी का नाश तथा रुचि और स्वरकी वृद्धि होती है ।
( मात्रा - ३ माशे । ) (६६५५) व्योषादिचूर्णम् (५) ( वृ. मा. । मुखरोगा. ; व. से. ) व्योषक्षाराभयावद्विचूर्णमेतत्प्रधर्पणम् । उपजिह्वोपशान्त्यर्थमेभिस्तैलं विपाचयेत् ॥
सोंठ, मिर्च, पीपल, जवाखार, हर्र और चीता समान भाग ले कर चूर्ण बनावें ।
इसे उपजिह्वा पर मलना लाभदायक है । इन्हीं ओषधियोंसे तेल सिद्ध करके प्रयुक्त करना भी हितकारी है।
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[ वकारादि
(६६५६) व्योषादिचूर्णम् (६)
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( व. से. ; धन्व; यो. र.; वृ. मा. । अर्शो. ; च. द. । अर्शो. ५ ; वृ. यो. त. । त. ६९ ) व्योषान्यरुष्करविडङ्गतिलाभयानां
चूर्गे गुडेन सहितं तु सदोपयोज्यम् । दुर्नाशोफगर कुष्ठशद्विबन्ध -
नेत्यवतां कृमिपाण्डुतां च ॥ सोंठ, मिर्च, पीपल, चीता, शुद्ध भिलावा, बायबिडुंग, तिल और हर्र समान भाग कर चूर्ण बनावें 1
इसे गुड़ में मिलाकर सेवन करने से अर्श, शोथ, गरविष, कुष्ठ, मलावरोध, अग्निमांद्य, कृमि और पाण्डुका नाश होता है ।
( मात्रा - ३ - ४ माशे । ) (६६५७) व्योषादिचूर्णम् (७) (व. से. । ग्रहण्य.) व्योषं साम्रत्वचं वत्सं चूर्णयेत्तण्डुलाम्बुना । निपीतं ग्रहणीदोष कामलापाण्डुरोगजित् ॥ प्रमेहारुच्यतीसारगुल्मशोथज्वरापहम् ॥
सोंठ, मिर्च, पीपल, आमकी छाल और कुड़ेकी छाल समान भाग ले कर चूर्ण बनावें ।
इसे तण्डुलोदक (चावल के पानी) के साथ सेवन करनेसे संग्रहणी, कामला, पाण्डु, प्रमेह, अरुचि, अतिसार, गुल्म, शोथ और ज्वरका नाश होता है ।
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(६६५८) व्योषादिचूर्णम् (८) ( यो. त. । त. ७ ) व्योषवरैला मुस्तविडङ्ग पत्रमखिलसममत्रलवङ्गम् ।