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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६०६ www.kobatirth.org भारत - भैषज्य रत्नाकरः (६६५४) व्योषादिचूर्णम् (४) (बृ. मा. । मुख.; भै. र. । नासा. ; च. द. । नासा ५७; ग. नि. । चूर्णा. ३, नासा. ४; व. से. ; धन्व . ) व्योषचित्रकतालीसतिन्तिडी काम्लवेतसम् । सचव्यजाजितुल्यांश मेलात्वक्पत्रपादिकम् ॥ व्योषादिकमिदं चूर्ण पुराणगुड संयुतम् । पीनश्वासकासनं रुचिस्वरकरं परम् ॥ सोंठ, मिर्च, पीपल, चीता, तालीसपत्र, तिन्तड़ीक, अम्लवेत, चव और जीरा ४-४ भाग तथा इलायची, दालचीनी और तेजपात १-१ भाग लेकर चूर्ण बनावें । इसे पुराने गुड़में मिला कर सेवन करने से पीनस, श्वास और खांसी का नाश तथा रुचि और स्वरकी वृद्धि होती है । ( मात्रा - ३ माशे । ) (६६५५) व्योषादिचूर्णम् (५) ( वृ. मा. । मुखरोगा. ; व. से. ) व्योषक्षाराभयावद्विचूर्णमेतत्प्रधर्पणम् । उपजिह्वोपशान्त्यर्थमेभिस्तैलं विपाचयेत् ॥ सोंठ, मिर्च, पीपल, जवाखार, हर्र और चीता समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । इसे उपजिह्वा पर मलना लाभदायक है । इन्हीं ओषधियोंसे तेल सिद्ध करके प्रयुक्त करना भी हितकारी है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ वकारादि (६६५६) व्योषादिचूर्णम् (६) 1 ( व. से. ; धन्व; यो. र.; वृ. मा. । अर्शो. ; च. द. । अर्शो. ५ ; वृ. यो. त. । त. ६९ ) व्योषान्यरुष्करविडङ्गतिलाभयानां चूर्गे गुडेन सहितं तु सदोपयोज्यम् । दुर्नाशोफगर कुष्ठशद्विबन्ध - नेत्यवतां कृमिपाण्डुतां च ॥ सोंठ, मिर्च, पीपल, चीता, शुद्ध भिलावा, बायबिडुंग, तिल और हर्र समान भाग कर चूर्ण बनावें 1 इसे गुड़ में मिलाकर सेवन करने से अर्श, शोथ, गरविष, कुष्ठ, मलावरोध, अग्निमांद्य, कृमि और पाण्डुका नाश होता है । ( मात्रा - ३ - ४ माशे । ) (६६५७) व्योषादिचूर्णम् (७) (व. से. । ग्रहण्य.) व्योषं साम्रत्वचं वत्सं चूर्णयेत्तण्डुलाम्बुना । निपीतं ग्रहणीदोष कामलापाण्डुरोगजित् ॥ प्रमेहारुच्यतीसारगुल्मशोथज्वरापहम् ॥ सोंठ, मिर्च, पीपल, आमकी छाल और कुड़ेकी छाल समान भाग ले कर चूर्ण बनावें । इसे तण्डुलोदक (चावल के पानी) के साथ सेवन करनेसे संग्रहणी, कामला, पाण्डु, प्रमेह, अरुचि, अतिसार, गुल्म, शोथ और ज्वरका नाश होता है । For Private And Personal Use Only (६६५८) व्योषादिचूर्णम् (८) ( यो. त. । त. ७ ) व्योषवरैला मुस्तविडङ्ग पत्रमखिलसममत्रलवङ्गम् ।
SR No.020117
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages908
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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