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चूर्णप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः सर्वेभ्यो द्विस्टिताकन्द
(६६६०) व्योषादिचूर्णम् (१०) प्रबलमलहरमुष्णकबन्धम् ॥
(ग. नि. । राजय. ९) ___ सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, आमला,
व्योषचव्यविडङ्गानि चूर्णीकृत्वा लिहेन्नरः । इलायची, नागरमोथा, बायबिडंग और तेजपात १-१ भाग तथा लौंग सबके बराबर एवं
सर्पिमधुभ्यां मुच्येत क्षयरोगाज्जितेन्द्रियः ॥ निसोत इन सबसे २ गुनी ले कर चूर्ण बनावें । ।
सांठ, मिर्च, पीपल, चव और बायबिडंग इसे उष्ण जलके साथ पीनेसे विरेचन हो कर पेट साफ़ हो जाता है।
___ इसे घी और शहदके साथ सेवन करनेसे (मात्रा-६ माशे ।)
जितेन्द्रिय रोगीका क्षय रोग नष्ट हो जाता है। (६६५९) व्योषादिचूर्णम् (९) (६६६१) व्योषाद्यं चूर्णम् (१) ( यो. र. । ग्रहण्य. ; वृ. नि. र. )
(व. से. । बालो.) व्योषं दीप्याजमोदाकृमि
गुडोदकञ्च क्वथितं व्योषसैन्धवसंयुतम् । रिपुदहनं रामठं चाश्वगन्धं सुखोष्णं पाययेदालं कासरोगपशान्तये ॥ सिन्धुत्थं जीरके द्वे रुचक
__सांठ, मिर्च, पीपल और सेंधा नमक समान ___ फलयुतं धान्यकं तुल्यभागम् । भाग ले कर चर्ण बनावें । भृङ्गीचूर्णे लवङ्गं घृतमधु
गुडको पानीमें पकाकर उसमें यह चूर्ण मि. सहितं शाणमात्रं च दद्या
लाकर मन्दोष्ण करके बालकको पिलानेसे खांसी घोप्तिं पुष्टिं च कान्ति बल
नष्ट होती है। ___ मपि कुरुते नाशयेत्सङ्घहण्याम् ॥
(६६६२) व्योषायं चूर्णम् (२) सोंठ, मिर्च, पीपल, अजवायन, अजमोद (इसके स्थानमें भी अजवायन), बायबिडंग, चीता,
(ग. नि. । चर्णा. ३; यो. चि. म. । अ, २) हींग, असगन्ध, सेंधा, सफेद और काला जीरा, | सव्योष क्रिमिजित्सपञ्चलवणं साजाजिकं साभयं विजौ रे नीबूका गूदा, धनिया, अतीस और लौंग सक्षारं सहुताशनं सचविकं सग्रन्थिकं सत्रिवत् । समान भाग ले कर चूर्ण बनावें ।
एतच्चूर्णमुदश्विता प्रपिबतामुष्णेन वा वारिणा मात्रा--५ माशे।
वहिर्वृद्धिमुपैति सर्वगदजिद्भाजिष्णुतामावहेत् ॥ ___ इसे घी और शहदके साथ सेवन करनेसे सोंठ, मिर्च, पीपल, बायबिडंग, पांचों नमक संग्रहणी नष्ट होती और अग्नि, पुष्टि, कान्ति तथा (सेंधा, संचल, बिड नमक, सामुद्र लवण, काच बलकी वृद्धि होती है।
लवण ), जीरा, हर्र, जवाखार, चीता, चव, पीप
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