Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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अवलेहप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः
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मात्रा-११ तोला।
सञ्चूर्ण्य सर्व पृथगेव पालिइसे प्रातःकाल सेवन करना चाहिये । इसके ___कं क्षीरेण पाच्यं दशभागकेन ॥ सेवनसे कामशक्ति बढ़ती है।
सिता प्रदेया दशपालिका च
__ पाकं विदध्यादपि चाग्नियोगतः । (६७०२) वाजीकरी लेहः (२)
मधुप्लुतं भक्षितमर्धयामा(र. प्र. सु. । अ. १२)
कामप्रदीप्तिं कुरुते सदैव ॥ शङ्गाटकस्यापि पलं विधेयं
वीर्यस्य वृद्धिं हि तथाऽग्निदि वाराहिकन्दश्च पलप्रमाणः ।
बलप्रवृद्धिं सहसैव कुर्यात् ॥ चूर्णीकृतं गालितमेव वस्त्राद्
शतावर, गोखरु, दाभकी जड़, सिंघाड़ा, भृष्टं तथाज्येन सितासमेतम् ।। नागबला (गंगेरन) और कौंचके बीजोंका चूर्ण ५-५ लवङ्गकृष्णागरुकेशराणां
तोले तथा दूध १। सेर एवं मिश्री ५० तोले ले पलंपदद्याद्दशभागदुग्धम् । कर सबको एकत्र मिला कर मन्दाग्नि पर पकायें । लेहं सुजातं खलु भक्षयेत
जब गाढ़ा हो जाय तो उसे अग्निसे नीचे उतार कर्षप्रमाणं नितरां प्रगे वै ॥ कर ठण्डा करके उसमें (५ तोले) शहद मिला कर कामस्य वोधं कुरुते हि शीघ्र
सुरक्षित रक्खें । नारी रमेद्वै चटकायतेऽसौ ॥
इसे खानेसे आधा पहर पश्चात् ही काम सिंघाड़े और बाराहीकन्दका कपड़छन चूर्ण प्रदीप्त हो जाता है। ५-५ तोले ले कर धीमें भून लें और उसमें १।
यह पाक वीर्य, अग्नि और बलकी वृद्धि भी सेर दूध तथा आवश्यकतानुसार मिश्री मिला कर
करता है। मन्दाग्नि पर पकायें । जब गाढ़ा हो जाय तो उसमें ११-१। तोला लौंग, पीपल, अगर और नागकेसर
(मात्रा-१ तोला ) का चूर्ण मिला कर सुरक्षित रखें।
(६७०४) वाजीकरो लेहः (४) इसे प्रातःकाल १। तोलेकी मात्रानुसार सेवन (र. प्र. सु. । अ. १२) करनेसे शीघ्र ही कामोत्तेजित हो कर मनुष्य चिड़ेके माषाणामात्मगुप्तानां बीजानामाढकं नवम । समान बार बार स्त्रीसमागम कर सकता है।
जीवकर्षभको जीवां मेदां वृद्धिं शतावरीम् ॥ (६७०३) वाजीकरो लेहः (३) मधुकं चाश्चगन्धां च साधयेत्प्रसृतोन्मितान् ।
( र. प्र. सु. । अ. १२) रसे तस्मिन् घृतप्राथं गव्यं दशगुणं पयं ॥ शतावरीगोक्षुरदर्भमूलं
विदारीस्वरसप्रस्थं प्रस्थमिक्षुरसस्य च । शङ्गाटकं नागबलात्मगुप्ते । दचा मृद्वमिना साध्यं सिद्धं सपिनिधापयेत् ॥
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