Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[वकारादि
बासा, नीमकी छाल, पटोल, त्रिफला, (६५१२) वासादिकषायः (७) असना और जवासा समान भाग ले कर क्वाथ | ( वृ. मा. । रक्तपित्ता. ; हा. सं. । स्था. ३ बनावें ।
अ. १० ; यो. र.; ग. नि. । रक्तपित्ता. ८ ) इसमें गूगल मिला कर पिलानेसे कफ प्रधान
वासायां विद्यमानायामाशायां जीवितस्य च । अम्लपित्त नष्ट होता है।
रक्तपित्ती क्षयी कासी किमर्थमवसीदति ॥ (६५१०) वासादिकषायः (५)
यदि रोगीके जीवनकी आशा हो और बासा (वृ. मा. । ज्वरा. ; ग. नि. । ज्वरा. १ ; हा. | (असा) मौजद हो तो रक्तपित्त, क्षय और सं. । स्था. ३ अ. २; यो. र. । विषमज्वरा. ;
खांसीके रोगीको कष्ट उठानेकी क्या आवश्यकता र. र. । ज्वरा.)
है । इन रोगोंमें बासा अवश्य लाभ पहुंचाता है । वासाधात्रीस्थिरा' दारुपथ्या नागरसाधितः ।।
(६५१३) वासादिकषायः (८) सितामधुयुतः क्वाथश्चातुर्थिकनिवारणः ॥
(हा. सं. । स्था. ३ अ. २) ___बासा (अडूसा), आमला, शालपर्णी, देवदारु,
वासागडूचीत्रिफला पटोली हर और सोंठ समान भाग ले कर क्वाथ बनावें ।
सठी च तिक्ता मधुना कषायम् । ___ इसमें मिश्री और शहद मिला कर पीनेसे
श्लेष्मप्रभूतेषु रुजेषु सम्यक्चातुर्थिक ज्वर नष्ट होता है।
ज्वरं निहन्यात् कफजं च शीघ्रम् ।। (६५११) वासादिकषायः (६)
बासा (अडूसा), गिलोय, त्रिफला, पटोल, (. मा. । रक्तपित्तो. ; हा. सं. । स्था. ३.
कचूर और कुटकी समान भाग ले कर क्वाथ अ. १० ; यो. र. ; वृ. नि. र.) वासाकषायोत्पलमृत्मियङ्ग
इसमें शहद मिला कर पीनेसे कफज ज्वर ___ लोध्राअनाम्भोरुहकेसराणि । पीत्वा सिताक्षौद्रयुतानि जह्या
शीघ्रही नष्ट हो जाता है। पित्तासृजो वेगमुदीर्णमाशु ॥ ___ (६५१४) वासादिकषायः (९) बासेके क्वाथमें नीलोत्पल, सौराष्ट मृत्तिका, (यो. र. । विषमज्वरा.) फूल प्रियंगु, लोध, सुरमा और कमलकेसरका | | वासापटालत्रिफला द्राक्षाशम्पाकनिम्बजः । चूर्ण तथा मिश्री और शहद मिला कर पीनेसे प्रबल समधु ससितः क्वाथो हन्यादेकाहिकं ज्वरम् ।। रक्तपित्तभी नष्ट हो जाता है।
____बासा, पटोल, त्रिफला, मुनक्का, अमलतास १ फला इति पाठान्तरम्
और नीमकी छाल समान भाग ले कर क्वाथ २ धान्येति पाठान्तरम्
बनावें।
बनावें।
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