Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कषायप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः (६९३७) विश्वादिकषायः (६)
(६५४०) विश्वादिकषायः (९) ( वृ. मा. । अजीर्णा.)
( हा. सं. । स्था. ३ अ. ४)
विश्वोपकुल्यामरिचं शठीनां विश्वाभयागुडूचीनां कषायेण षडूषणम् ।
यवानिकाचित्रहरीतकीनाम् । पिवेच्छ्लेष्मणि मन्देऽग्नौ त्वक्पत्रसृरभी कृतम्।।
क्वाथो यकृत्पाचनकेपि शस्तः सांठ, हर्र और गिलोय के क्वाथमें पीपल,
___ आनाहगुल्मातिविषूचिकानाम् । पीपलामूल, चव, चीता, सेांठ और मरिचका चूर्ण |
सेठ, पीपल, काली मिर्च, कचूर, अजवायन, मिला कर और उसे तेजपात तथा दालचीनीके चीता और हर्र समान भाग ले कर वाथ बनावें। चूर्णसे सुगन्धित करके पीनेसे कफज अग्निमांद्य नष्ट
यह काथ यकृतगुल्मको पचाने में उपयोगी होता है।
है तथा अफारा, गुल्म और विषूचिकाको नष्ट (६५३८) विश्वादिकषायः (७) | करता है। (भै. र. । ज्वरा.)
(६५४१) विश्वादिकषायः (१०)
(ग. नि. । ज्वरा. १) विश्वामृताग्रन्थिकसिद्धतोयं मरुज्ज्वरः स्यात् पिबतः कुतोऽयम् ।
विश्वौषधच्छिन्नरुहाकिरातक्याथोऽथ कुस्तुम्बुरुदेवदारू
तिक्तैः समुस्तैः क्वथितं जलं यः ।
पिबत्यसौ न ज्वरसम्भवानाक्षुद्रौषधैः पाचनमत्र चारु॥
___ माधारतामेति रुजां कदाचित् ॥ सोंठ, गिलोय और पीपलामूलका अथवा
सेठ, गिलोय, चिरायता और नागरमोथा धनिया, देवदारु, कटेली और सांठका क्वाथ वात
समान भाग ले कर क्वाथ बनावें । ज्वरको नष्ट करता है।
यह क्वाथ ज्वरको नष्ट करता है । (६५३९) विश्वादिकषायः (८) (६५४२) विश्वादिकषायः (११) (वृहद) (ग. नि. । ज्वरा. १)
( वृ. मा. । शूला. ; च. द. ; र. र. । शूला.)
विश्वोरुबूकदशमूलयवाम्भसा च सर्वज्वरमशमनार्थमुदाहरन्ति
द्विक्षारहिङ्गुलवणत्रयपुष्कराणाम् । विश्वौषधेन सह पर्पटकं मुनीन्द्राः। चूर्ण पिबेद्धदयपार्श्वकटीग्रहामसेठि और पित्त पापड़ा समान भाग ले कर पक्वाशयां स भृशरुग्ज्वरगुल्मशूली ॥ क्वाथ बनावें ।
सांठ, अरण्डमूल, दशमूल और इन्द्रजौके यह क्वाथ समस्त ज्वरोको नष्ट करता है । ! क्वाथमें जवाखार, सज्जीखार, हींग, सेंधानमक, ७३
For Private And Personal Use Only