Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
भारत - भैषज्य - र
४०६
(२) शुद्ध गन्धकको एक दिन भंगरेके रसमें घोट कर लोहपात्रमें बेरीकी अग्नि पर पिघलावें और भंगरे के रस में बुझा दें । इसी प्रकार पिघला पिघला कर ३ बार भंगरे के रस में बुझावें ।
इसके सेवनसे मल सम्बन्धी समस्त नष्ट होते हैं ।
अब उपरोक्त पारद और गन्धक समान भाग कर दोनोंकी कज्जली बनावें । और उसे लोह - पात्रमैं पिघला कर गायके गोबर पर बिछे हुए केले के पत्ते पर फैला दें तथा उसके ऊपर दूसरा कदली पत्र रख कर उसे गोबर से दबा दें एवं थोड़ी देर पश्चात् दोनों पत्तोंके बीचसे पर्पटीको निकाल कर उसे गाय के घी में भून कर सुरक्षित रक्खें ।
शुद्ध पारद २ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग और लोह भस्म १ भाग लेकर तीनोंकी कज्जली करके उसे घृतलिप्त लोह पत्र में डाल कर मन्दाग्नि पर पकायें और उसके अच्छी तरह पिघल जाने पर उसे गायके गोबर पर बिछे हुए केले के पत्ते पर डाल कर उस पर दूसरा कदली पत्र ढक दें और उसे गोबरसे दबा दें। तदनन्तर थोड़ी देर पश्चात् दोनों पत्तों के बीचसे पर्पटीको निकाल कर पीस लें और उसे क्रमशः भरंगी, मुण्डी, अगस्ती, त्रिफला, रोग जया, संभालू, त्रिकुटा, बासा और घी कुमार के स्वरस या काथकी पृथक पृथक सात सात भावना दें और फिर उसे सुखा कर लघुपुटमें पकावें ।
इसे जीरे और हींग चूर्णके साथ सेवन करने से वातज आमशूल, ग्रहणी, कामला, गुल्म और ८ प्रकार के उदर रोग नष्ट होते हैं ।
(६०६८) रसपर्पटी (५)
( यो. र. र. च । राजयक्ष्मा. ; र. चि. म. । अ. ९; यो त । कासा . )
भागो रसस्य गन्धस्य द्वावेको लोहभस्मतः । एतद् घृते द्रवीभूतंमृद्वग्नौ कदलीदले || पातयेद्गोमयगते तथैवोपरि योजयेत् । ततः पिष्ट्वा द्रवैरेभिर्मर्दयेत्सप्तधा पृथक ॥ भार्गीमुण्डी मुनिवराजयानिर्गुण्डिकाद्रवैः । व्योपवासक कन्यार्द्रद्रवैः शुष्कं पुटेल्लघु ॥ अगन्धं खर्परे नाम्ना पर्पटीति रसो भवेत् । सर्वरोगहरः स्वैः स्वैरनुपानैर्द्विमाषतः ॥
[रकारादि
ताम्बूलपत्रसहिता कासश्वासहरा परा । सकणः सुरसाक्वाथोऽनुपानं वा सगोजलम् ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मात्रा -- २ माशे ।
इसे पानके साथ खानेसे खांसी और स्वास नष्ट होता है ।
अनुपान - - औषध खानेके पश्चात् तुलसीके काथमें पीपलका चूर्ण मिला कर या गोमूत्र पीना चाहिए ।
( व्यवहारिक मात्रा - ३ रत्ती । )
पर्पटी (६)
( र. रा. सु. । राजयक्ष्मा. )
प्रयोग संख्या ४३१० " पर्पटी रसः " (२)
देखिये ।
र. रा. सु. में गन्धक तीन गुना लिखा है ।
For Private And Personal Use Only