Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[रकारादि
Regak e माक्षिक) सर्व श्रेष्ठ, द्वितीय मध्यम और तृतीय सूचना
(कांस्य माक्षिक ) अधम मानी जाती है। क रौप्य भस्मकी अन्य विधियां तारमारण मैं तथा तारभस्मके नामसे आ चुकी हैं।
म स्वर्ण माक्षिक, स्वर्ण निर्माणमें; रौप्य माक्षिक
चांदी बनानेमें और कांस्य माक्षिक केवल औषधोंमें (६१६४) रौप्यमाक्षिकशोधनमारणे. प्रयुक्त होती हैं। (र. र. स. । पू. खं. अ. २)
माक्षिकको बासेके कोथ या जम्बीरीके रस विमलस्त्रिविधः प्रोक्तो हेमाद्यस्तारपूर्वकः ।।
अथवा मेढासिंगीके रसमें स्वेदित करनेसे वह शुद्ध तृतीयः कांस्यविमलस्तत्तत्कान्त्या च लक्ष्यते ॥ | हा जाता है । वर्तुलः कोणसंयुक्तः स्निग्धश्च फलकान्वितः इस विधिसे अन्य धातु भी शुद्ध हो जाती हैं। मरुत्पित्तहरो वृष्यो विमलोऽति रसायनः ॥ ___ माक्षिकमें शुद्ध गन्धक मिलाकर दोनोंको प्रों हेमक्रियामुक्तो द्वितीयो रौप्यन्मतः। बढलके रस या नीबूके रसमें घोट करे टिकिया तृतीयो भेषजे तेषु पूर्व पूर्व गुणोत्तरः ॥ बनावें और उन्हें सुखाकर, शराव सम्पुटमें बन्द आयरूपजले स्विनो विमलो विमलो भवेत। करके गजपुटमें फूंक दें। इसी प्रकार १० पुट जम्बीरस्वरसे स्विन्नो मेषशङ्गीरसेऽथ वा ॥ | देनेसे माक्षिककी भस्म तैयार हो जाती है । आयाति शुद्धिं विमलो धातवश्च यथापरे। (६१६५) रौप्यमाक्षिकसत्वपातनम् (१) गन्धाश्मलकुचाम्लैश्च म्रियते दशभिः पुटैः ॥ विमलं शिग्रुतोयेन कांक्षी कासीसटङ्कणम् ।
माक्षिक ३ प्रकारकी होती है; एक स्वर्ण- | वज्रकन्दसमायुक्तं भावितं कदलीरसैः॥ माक्षिक, दूसरी रौप्य-माक्षिक, और तीसरी कांस्य- मोक्षकक्षारसंयुक्तं ध्मापितं मूकमूषगम् । माक्षिक ।
सत्त्वं चन्द्राकेसंकाशं पतते नात्र संशयः॥ स्वर्णमाक्षिकमें सोनेकी, रौप्यमाक्षिकमें फिटकी, कसोस, सुहागा, जंगली जिमीकन्द चांदीकी, और कांस्यमाक्षिकमें कांसेकी झलक | (सूरण), मोखा (छोंकरा) वृक्षका क्षार और माक्षिक होती है।
समान भाग लेकर सबको सहेजनेके रस और केलेके उत्तम माक्षिक गोल, बहुतसे कोनों वाली, पानीके साथ खरल करके मूषामें रख कर ध्मानेसे स्निग्ध और फलकान्वित (बहुतसे पहलू वाली) माक्षिकका अत्यन्त उज्ज्वल सत्व निकल आता है। होती है।
। (६१६६) रौप्यमाक्षिकसत्वपातनम् (२) ___ माक्षिक वातपित्त नाशक; वृष्य और रसा- सटङ्कलकुचद्रावैर्मपशङ्ग्याश्च भस्मना । यन है। तीनों प्रकारकी माक्षिकोंमें प्रथम (स्वर्ण पिष्टो मृषोदरे लिप्तः संशोष्य च निरुध्य च ॥
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