Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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चतुर्थी भागः
रसप्रकरणम् ]
छायाशुष्कां च तत्रा गुटिकां भक्षयेत्ततः । जीर्णे रसेन रूक्षेण पेया पूर्वे न भोजयेत् ॥ यन्त्र ब्रह्मचर्याः क्रमेण गुटिकामपि । खादेत्प्रातस्तु माकं भवेत्कामचरः क्रमात् ॥ एवं सर्वाणि कुष्ठानि जयत्यांतबलान्यपि । धीमेधास्मृतियुक्तस्तु नित्यं जीवेत्समाः शतम् ॥
कलियाकी जड़, निसोत और लोह चूर्ण ( भस्म ) ५०-५० तोले ले कर सबका चूर्ण करके उसे भंगरेके रस में घोटें और सम्पूर्ण औषधकी ३० गोलियां बनाकर छायामें सुखा लें 1
इनमेंसे प्रथम आधी आधी गोली नित्य प्रति प्रातः काल सेवन करावें और औषध पचने पर रूक्ष पदार्थों के रस से पेया बनाकर खिलावें । औषध पचनेके पहिले भोजन न देना चाहिये ।
कुछ दिन बाद मात्रा बढ़ाकर एक गोली तक खिला सकते हैं ।
इनके सेवन से १ मास में सम्पूर्ण कुष्ठ नष्ट हो कर धी, मेधा और स्मृतिकी वृद्धि होती है । (६३६४) लाङ्गल्याद्यं लौहम्
( र. रा. सु. । वातरक्ता. ; धन्व; रसे. सा. सं. र. र. । वातरक्ता. ) विशुद्धलाङ्गलीमूल त्रिकटुत्रिफलैस्तथा । लाक्षागुग्गुलुभिस्तुल्यं लौहचूर्ण नियोजयेत् ॥ मातुलुङ्गरसेनैव त्रिफलाया रसेन च । विमृद्य यत्नतः पश्चात् गुटिकां कोल सम्मिताम् भक्षयेन्मधुना सा शृणु कुर्वन्ति यान् गुणान् ।
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आजानुस्फुटितं घोरं सर्वाङ्गस्फुटितं तथा ॥ तत्सर्वं नाशयत्याशु साध्यासाध्यं च शोणितम् ॥
शुद्र कलियारी मूल, सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, आमला, लाख, और गूगल १ – १ भाग तथा लोह भस्म सबके बराबर लेकर सबको एकत्र मिला कर जम्बीरी नीबू के रस और त्रिफला के काथमें घोट कर बेरके समान गोलियां बना लें।
इन्हें शहद में मिलाकर सेवन करना चाहिये । इनके सेवनसे जानु तक तथा सर्वांग में फूटे हुवे साध्यासाध्य हर प्रकारके वातरक्तका नाश होता है। (६३६५) लाविकाचूर्णम् (१) (मध्यम) ( र. रा. सु. ; र. का. धे. । ग्रहण्य. )
इसके सेवन कालमें संयम पूर्वक रहना और अभ्रं पारदगन्धकं करिकणा भल्लातजातीफलम् का पालन करना चाहिये ।
क्षारं हिङ्गु विडङ्गपञ्चलवणं धूमश्च कुष्ठं वचा ।। द्वे जीरे त्रिफलाजमोदमरुणाव्योषं यवानी | ततश्चूर्ण सर्वमिदं समेन रजसा शक्राशनेनान्वितम् ॥ मन्दाग्निं ग्रहणीं प्रमेहहरणं दुर्नामकासापहम् । शोधानीकवमित्वशूलनिचयं नानातिसारं ज्वरम् ॥
हन्यादामसमीरणमरुचि
गदान् लूतामयं पाण्डुताम् । सर्वेऽपि शमं प्रयान्ति
नियतं रोगास्तु वातादयः ॥ प्रातश्चाक्षमितारनाल
सहिता भुक्ता च सा लाविका ।
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