Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[लकारादि
इसे १ रत्तीसे प्रारम्भ करके प्रतिदिन १-१ निरुत्थ लोह भस्मको सोंठ, मिर्च, पीपल रत्ती बढ़ाते हुवे १ सप्ताह, दो सप्ताह या आरोग्य और बायबिडंगके समान भाग मिश्रित ४ माशे लाभ होने तक सेवन करना चाहिये। (जिस चूर्णमें मिला कर घी और शहदके साथ सेवन प्रकार प्रति दिन एक एक रत्ती मात्रा बढ़ाई जाय | करनेसे जरा, व्याधि और अकालमृत्युका नाश उसी प्रकार घटानी चाहिये ।
होता तथा पुत्रकी प्राप्ति होती है। इसके सेवनसे सूतिकारोग, ज्वर, कष्टसाध्य
___ लोह भस्म सेवन करने वालेको गर (संयोगसंग्रहणी, आम, शूल, अतिसार, पाण्डु, कामला,
जनित विष) हानि नहीं पहुंचा सकते । प्लीहा, अग्निमांद्य, भस्मक रोग, आमवात, उदावर्त, १८ प्रकारके कुष्ठ, अनेक प्रकारके विषविकार __ (६३९८) लोहभस्मयोगः (२) इत्यादि रोग नष्ट होते हैं।
(बृ. मा. । पाण्डु. ; व. से. । पाण्डु.) पथ्यापथ्य--इसके सेवन कालमें लाल चावलोंका भात खाना और शाक, विदाही पदार्थ,
| तुल्यां वाऽयोरजः पथ्यां हरिद्रां क्षौद्रसर्पिषा । वात (पवन) में रहना, धूपमें जाना, क्रोध, चिन्ता | चूर्णितां कामली लिह्याद्गुडक्षौद्रेण चाभयाम् ।। और मैथुनसे परहेज करना चाहिये।
लोह भस्म, हर्रका चूर्ण और हल्दीका चूर्ण इसे प्रातः काल विधिवत् सेवन करना और समान भाग ले कर सबको एकत्र मिलाकर शहद पथ्य पूर्वक रहना चाहिये ।
और धीके साथ सेवन करनेसे कामलाका नाश इसे अधिक काल तक निरन्तर सेवन करनेसे
होता है। बलिपलितका नाश होता और आयु बढ़ती है।
कामलामें हरके चूर्णको गुड़में मिला कर लोहपर्पटीरसः
शहदके साथ सेवन करना भी हितकारी है । (र. चि. म. । अ. ८ ; र. रा. सु. । श्वासा. ; रसे. सा. सं.; धन्व. । हिक्का श्वासा.) ।
| (६३९९) लोहभस्मयोगः (३) प्र. सं. ६०६८ " रसपर्पटी” (५) (बृ. मा ; च. द. । परिणाम शूला. २७; देखिये।
ग. नि. । शूला. २३) (६३९७) लोहभस्मयोगः (१)
लोहचूर्ण वरायुक्तं विलीढं मधुसर्पिषा । (र. प्र. सु. । अ. ४)
पक्तिशूलं च शमयेत्तन्मलं वा प्रयोजितम् ॥ निरुत्थं लोहजं भस्मसेवेतात्र पुमान् सुधीः । व्योषवेल्लाज्यमधुना टङ्कमानेन मिश्रितम् ॥ ___ लोह भस्म या मण्डूर भस्मको समान भाग जरां च मरणं व्याधि हन्यात्पुत्रप्रदं सदा । त्रिफला चूर्णमें मिला कर शहद और घोके साथ गरदोषकृता रोगा न भवन्ति शरीरिणाम् ॥ | चाटनेसे पक्तिशूल नष्ट होता है।
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