Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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घृतप्रकरणम्]
चतुर्थों भागः
४८७
इसे पान, अभ्यंग और नस्य द्वारा प्रयुक्त | सोंठ, मिर्च, पीपल, अजमोद, अजवायन, चव, हींग करना चाहिये।
और अम्लबेतका कल्क मिलाकर मन्दाग्नि पर (६२७२) लशुनाद्यं घृतम् (२)
| पकावें । जब जलांश शुष्क हो जाय तो छान लें।
___ यह घृत शूल, गुल्म, अर्श, उदर रोग, वर्म, ( च. सं । चि. अ. १४; च. द. ; वृ. नि.
पाण्डु, प्लीहा, योनिदोष, ज्वर, कृमि, वातकफज र.। उन्मोदा.)
रोग और उन्मोदको नष्ट करता है। लशुनस्याविनष्टस्य तुलाधैं निस्तुषीकृतम् । (६२७३) लाक्षाद्यं घृतम् तददै दशमूलस्य द्वथाढकेऽपां विपाचयेत् ॥
(व. से. । बालरोगा.) पादशेषे घृतपस्थं लशुनस्य रसं तथा ।
लाक्षाकुष्ठविडङ्गानि सरलं रजनीवयम् । कोलमूलकक्षाम्लमातुलुङ्गाकै रसैः ॥
सूक्ष्मैला पद्मकं लोधं पद्मकं नागकेशरम् ॥ दाडिमाम्बु सुरामस्तु काधिकाम्लेस्तदर्द्धकैः ।
दधित्थतुत्थशैरीषशैरेयोद्दालपत्रकम् । साधयेत् त्रिफलादारुलवणव्योषदीप्यकैः॥ यवानीचव्यहिङ्ग्यालयेतसैश्च पलार्दिकैः।
घृतपस्थं पचेदेतैर्यावत्याकञ्च गच्छति ॥
कीटाखुसपैदष्टेषु स्फोटेषु विविधेषु च । सिद्धमेतत् पिबेच्छूलगुल्माझे जठरापहम् ॥ वर्मपाण्ड्वामयप्लीहयोनिदोषज्वरक्रिमीन् ।
विसपेंषु कुमाराणां लूतामूत्रकृतेषु च ॥ वातश्लेष्मामयान्सर्वानुन्माद चापकर्षति ॥
गण्डमालासु नारीषु सपिरेतद्यथामृतम् ॥
लाख, कूठ, बायबिडंग, चीड़, हल्दी, छिलके रहित उत्तम ल्हसन ३ सेर १० तोले
दारुहल्दी, छोटी इलायची, पद्माख, लोध, और दशमूल १ सेर ४५ तोले लेकर दोनोंको
कमल, नागकेसर, कैथ, तूतिया, सिरसकी छाल, एकत्र कूट कर १६ सेर पानीमें पकावें और ४
कटसरैया और लिहसोड़ेके पत्ते; इनके काथ और सेर पानी शेष रहने पर छान लें। तदनन्तर उसमें
कल्कके साथ घृत सिद्ध करें। २ सेर घी, २ सेर ल्हसनका रस और १-१ सेर
यह घृत कीट, मूषक और सर्पदंश; अनेक बेर, मूली, तिन्तडीक, बिजौ रे, अदरक और अना
प्रकारके विस्फोटक और मकड़ीके मूत्रसे उत्पन्न रका रस तथा सुरा, मस्तु और कांजी एवं २॥
बच्चोंके विसर्प तथा गण्डमालामें अमृतके समान २॥ तोले हर, बहेड़ा, आमला, देवदारु, सेंधा,
गुणकारी है। १. ग. नि. में दशमूलके स्थानपर पंचमूल (६२७४) लाक्षारसादिघृतम् लिखा है।
( हा. स. । स्था. ३ अ. ४३ ) २. ग. नि. में बेर, मूली, तिन्तडीक, बिजौरा लाक्षारसं चन्दनयष्टिकानां । और अदरकके रसका अभाव है।
पटोलधात्रीफलशर्कराणाम् ।।
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