Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः
४५३
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आमला, बेर. सांठ, मिर्च, पीपल, चीतामूल, देव- | रससिन्दूर २ भाग और ताम्र भस्म ४ भाग दारु, अफीम, हल्दी, दारुहल्दी, कोयल और | ले कर दोनेको एकत्र खरल करके ५ दिन काकपुनर्नवाकी जड़ १-१ भाग ले कर प्रथम पारे | जंघाके रसमें मर्दन करें । तदनन्तर उसका गोला गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य बना कर सुखा कर उसे शुद्ध ताम्रके सम्पुटमें बन्द
ओषधियोंका बारीक चूर्ण मिला कर सबको १ करें और फिर एक कपरमिट्टी की हुई हाण्डीके दिन भंगरेके रसमें खरल करके गोलियां बना लें। पेंदेमें एक छोटासा छिद्र करके उसमें वह सम्पुट मात्रा---१४ माशा।
रख दें तथा हाण्डीमें गले तक रेत भर कर चूल्हे इनके सेवनसे समस्त प्रकारके कुष्ठ नष्ट पर चढ़ा दें और उसके नीचे ८ पहर तक निरहोते हैं।
न्तर अग्नि जलावें। अनुपान--"चण्डभैरवरस' के समान । तदनन्तर हाण्डीके स्वांगशीतल होने पर ( देखो प्रयोग सं. १८७४).
उसमेंसे औषधको निकाल कर पीस लें और फिर रुद्रेश्वररसः (महा)
उसमें शहद तथा सुहागा मिला कर खुली हुई
मूषामें रख कर इतना ध्मा कि औषध चक्कर ( र. का. धे. । कुष्ठा.)
| खाने लगे । तत्पश्चात् ठण्डा करके पीस कर महा रौद्रेश्वररसः प्रयोग सं. ५५६८
सुरक्षित रक्खें । देखिये ।
मात्रा--३ रत्ती। (६१५७) रूपराजरसः
अनुपान--औषधको शहदके साथ चाट ( वृ. यो. त. । त. ११६; यो. त. । त. ६१; / कर त्रिफला-काथ पीना चाहिये । र. का. धे. । भगन्दरा.)
इसे सेवन करने और पथ्य पूर्वक रहनेसे रसेन्द्रभागद्वितयं म्लेच्छमारं चतुर्गुणम् । | भगन्दर शीघ्र ही नष्ट हो जाता है । काक जङ्घारसैमर्थ खल्वे दिवसपञ्चकम् ॥
रोगहररसः ताम्रसम्पुटके रुद्ध्वा सच्छिद्रे हण्डिकान्तरे। (र. चं. । ज्वरा. ; शा सं. । खं. २ अ. १२) निवेश्य वालुकां दत्त्वा देयोऽग्निः प्रहराष्टकम् ॥ प्रयोग संख्या ९४४ "कनकसुन्दरो रसः" स्वाङ्गशीतं समुद्धृत्य मधुटऋणसंयुतम् । देखिये। धमेन्मूषागतं तावद्यावद्भ्रमति तारवत् ॥ (६१५८) रोगेभसिंहश्रीखण्डवट्यौ रूपराजरसः सोऽयं भगन्दरकुलान्तकः । (र. रा, सु. । वाता. ; ध. ; र. का. धे. । वल्लमात्रममुं लीवा मधुना सह पथ्यभुक् ॥
वातव्या.) त्रिफलायाः पिबेत्स्वार्थ पश्चात्पथ्यं हितं चरेत् । मूताद्वयो घनवरानलवेल्लभाजी मुक्तः स्वल्परहोभिः स्याद्भगन्दरमहागदात् ॥ तिक्ताकटुत्रयवरैः सवचैः समांशैः।
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