Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकर
[मकारादि
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चावलेोके उष्ण मण्डx में हींग और काला | (५६८८) मद्यमप्रतीकारः नमक मिला कर पिलानेसे विषमाग्नि सम और (रा. मा. । विष रोगा. २८) मन्दाग्नि दीप्त हो जाती है।
लीवा घृतं शर्करया समेतं ___ उत्तम भुने हुवे चावल २० तोले, भुनी हुई निषेवते यो मदिरां प्रकामम् । मूंग १० तोले और तक ४० तोले लेकर सबको उद्दामदाऽपि न तस्य सा स्याएकत्र मिला कर उसमें ४। सेर पानी डाल कर न्मदस्य हेतुः परिपीयमाना ॥ पकावें और उसमें आवश्यकतानुसार धनिया, सेंधा, यदि घी और खांड मिलाकर चाटनेके पश्चात् हींग तथा तेल मिला कर मण्ड तैयार करें। उग्र मदिरा भी यथेच्छ परिमाणमें पी जाय तो ____ यह मण्ड क्षुधाको जाग्रत और बस्तिको शुद्ध । उसका नशा नहीं चढ़ता । करता है । तथा प्राणप्रद, रक्तवर्द्धक, ज्वरनाशक, (५६८९) मधुकादियोगः कफ पित्त हन्ता और वायु शामक है।
(व. से. । नेत्ररोगा.) (५६८७) मदनादिफलवतिः मधुकामलकस्नानं पित्तनं तिमिरापहम् । (वं. से. ; भा. प्र.; वृ. मा. । उदावर्ता. ____ मुलैठी और आमलेके साथ पके पानीसे स्नान व. यो. त.। त. ९६; यो. त. । त. ४५ करनेसे पित्त और तिमिर रोग नष्ट होता है । ___यो. र. । उदावर्त.)
(५६९०) मधुयोगः (१) मदनं पिप्पली कुष्ठं वचा गौराश्च सर्पपाः । (वै. जी. । विलास ४) गुडक्षारसमायुक्ता फलवतिः प्रशस्यते ॥
मदनज्वरकारिनामधेये आनाहं च गुदे शूलं कुक्षिशूलकमेव च ।
रसिके रत्नकले प्रभातकाले। तस्यवातमुदावत योगेनानेन शाम्यति ॥
शिशिराम्बु पिबन्मधुप्रयुक्तं __ मैनफल, पीपल, कूठ, बच, सफेद सरसों,
गणनाथोपि भवेत्किलास्थिशेषः ॥ गुड़ और जवाखार समान भाग लेकर चूर्णयोग्य चीजोंके चूर्णको गुड़में मिला कर बत्तियां बनावें ।
शीतल जलमें शहद मिलाकर प्रातःकाल पीनेसे इनमेंसे १-१ बत्ती मलमार्गमें रखनेसे
| अत्यन्त प्रवृद्ध स्थूलता भी नष्ट हो जाती है। अफारा, गुदाकी पीड़ा, कुक्षिशूल, वायु और उदा
(५६९१) मधुयोगः (२) वर्त नष्ट होता है।
(यो. त.। त. ७५) अन्नको १४ गुने पानीमें इतना पकावें कि मधुच्छागीपयः पीतं किंवा श्वेताद्रिकर्णिका । उसमें मोटे कण बाकी न रहें। इसीका नाम | पारावतमलं पीतं व्यहं तण्डुलवारिणा ॥ मण्ड है।
गर्भिणीगर्भतो रक्त स्तम्भयेभिपतद्रुतम् ॥
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