Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अअनप्रकरणम्]
चतुर्थों भागः
३७५
इन्हें शहदमें घिसकर आंखमें आंजनेसे | इसे आंखमें लगाना पित्त विदग्ध दृष्टि के लिये नेत्रोंकी रूक्षता, अर्बुद, फूला, दुर्मास, तिमिर, | हितकर है। अर्जुन, पटल, नेत्रवात, काच, और बिन्दु तथा (६०११) रसाञ्जनाद्यञ्जनम् (२) आंखों पर पानी आ जाना इत्यादि नेत्र रोग नष्ट (व. से.; वृ. नि. र. । नेत्र रोगा. ) होते हैं।
रसाअनं शिला दारु जातीपत्ररसो मधु । ___ (६००९) रसाचनादिगुटिका नक्तान्ध्यतां जयेदेतदञ्जनं साधुयोजितम् ॥ (सु. सं. । चि. अ. ८; यो. चि. म. | अ. ३; रसौत, मनसिल, देवदारु, चमेलीके पत्तोंका शा. सं. 1 खं. ३ अ. १३; वृ. नि. र. । व. - रस और शहद समान भाग लेकर अंजन बनावें ।
से. : यो. र. । नेत्र रोगा.) | इसे आंखमें आंजनेसे नक्तान्ध्य ( रतौंधा ) रसाञ्जनं हरिद्रे द्वे मालतीनिम्बपल्लवाः ।
| नष्ट होता है। गोसकद्रससंयुक्ता वतिनतान्ध्यनाशिनी ॥ (चूर्ण योग्य द्रव्यांका पृथक् पृथक् चूर्ण
रसौत, हल्दी, दारुहल्दी, चमेलीके पत्ते करके लेना चाहिये । ) और नीमके पत्ते समान भाग ले कर सबको अत्यन्त (६०१२) रसाजनाद्यञ्चनम् (३) बारीक पीस कर गायके गोबरके रसमें घोट कर । (शा. ध. । खं. ३ अ. ११; यो. र. ; वं. से. । बत्तियां बनावें ।
नेत्र रो.) इन्हें आंखमें आंजनेसे नक्तान्ध्य ( रतौंधा) रसाञ्जनं व्योषयुतं सम्पेष्य वटकीकृतम् । नष्ट होता है।
कण्ड्रपाकान्वितां हन्ति नूनमञ्जननामिकाम् ॥ __ (६०१०) रसाञ्जनाद्यञ्जनम् (१)
रसौत; सांठ, मिर्च, और पोपलका चूर्ण
समान भाग ले कर सबको एकत्र पीसकर गोली ( यो. र. । नेत्ररो. ; व. से. )
बनावें। रसाधनं घृतक्षौद्रतालीसस्वर्णगैरिकैः। इसे ( पानीमें घिस कर ) लगानेसे खुजली गोशकृद्रससंयुक्तं पित्तोपहतदृष्टये ॥ और पाक युक्त अञ्जननामिका ( अञ्जनहारी )
नष्ट होती है। रसौत, तालीस पत्र और सोना गेरुका अत्यन्त
(६०१३) रसाञ्जनाद्यञ्जनम् (४) बारीक चूर्ण तथा घी, शहद और गायके गोबरका
(वं. से; यो. र. । नेत्र रो.; ग. नि. नेत्ररोगा. ३.) रस समान भाग ले कर सबको एकत्र मिला कर
रसाअनं सर्जरसो जातीपुष्पं मनःशिला। खरल करें।
समुद्रफेनो लवणं गैरिकं मरिचानि च ॥ १ " मधुपल्लवाः” इति पाठान्तरम् । १ निशादार्वेति पाठान्तरम् ।
For Private And Personal Use Only